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भाषण : एमेच्योर ड्रमैटिक एसोसिएशन, मैसूरमें

अभी कुछ दिन में यहीं हूँ ।

तुम्हारा,

बापू

अंग्रेजी (जी० एन० ८७६) की फोटो नकलसे ।

१२०. भाषण : एमेच्योर ड्रमैटिक एसोसिएशन, मैसूरमें[१]

[९ जुलाई ,१९२७][२]

इस सप्ताहका शुभारम्भ गांधीजीकी उपस्थितिमें पंडित तारानाथके एमेच्योर ड्रमैटिक एसोसिएशन द्वारा अभिनीत 'कबीर' नामक नाटकसे हुआ। इसका उद्देश्य हिन्दी और खादीको लोकप्रिय बनाना था । इसलिए गांधीजीने नाटककी अपनी समा- लोचनाका सार 46 आधुनिक रूपमें कबीर ", इन दो शब्दोंमें प्रस्तुत करते हुए सभी सम्बन्धित लोगोंकी योग्य प्रशंसा की। उन्होंने सभी लोगों को इस बातके लिए धन्यवाद दिया कि उन सबने उन्हें तिहरा आनन्द पहुँचाया - एक आनन्द इस बातका कि उन्होंने " अपने मनसे दरिद्रनारायणके प्रतिनिधि बने इस व्यक्तिको एक थैली भेंट की जिसका मूल्य उसमें रखी हुई राशिके आधारपर नहीं आंका जा सकता", दूसरा आनन्द यह कि गांधीजीको दक्षिण भारतमें " शुद्ध उच्चारण-युक्त अच्छी हिन्दी " सुननको मिली और तीसरा यह कि उन्होंने सभी अभिनेताओंको खादीकी पोशाकें पहने देखा। उन्होंने आगे कहा :

मैं अब अपने किसी भी देशवासीको - फिर चाहे वह राजा हो अथवा किसान, वकील हो या डॉक्टर अथवा व्यापारी या कि वह स्त्री अथवा पुरुष समाजके उच्च- तम अथवा निम्नतम वर्गका हो - खादी न पहने देखता हूँ, तब मुझे दुःख होता है। सब खादी पहन सकते हैं इसे अभिनेताओंने इस नाटकमें मूर्त रूप देकर दिखाया है । मुझे उस दिनकी प्रतीक्षा है जब सब लोग हमारी मातृभूमिके इस सामान्य धर्मका पालन करेंगे और मुझे उम्मीद है कि अभिनेताओंने जिसका अभिनय किया है, उसे वे अपने जीवन में उतारेंगे और वह उनके तथा हमारे जीवनका स्थायी अंग बन जायेगा । सच मानिए, मैं अपने साथ कर्नाटकसे जिन सुखद स्मृतियोंको - अगर ईश्वरकी कृपा- से में यहाँसे जीवित जा सका तो - ले जाऊँगा उनमें इस शामकी स्मृति कोई कम सुखद न होगी ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २१-७-१९२७

  1. महादेव देसाईके " साप्ताहिक पत्र" से ।
  2. महादेव देसाईकी डायरीके अनुसार ।