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१२२. एक पत्र

कुमार पार्क,बंगलोर

१० जुलाई ,१९२७

प्रिय मित्र,

अम्बाला नगरके मुसलमानों द्वारा गत १ तारीखकी सार्वजनिक सभामें पास किये गये प्रस्तावोंकी प्रतियोंके लिए धन्यवाद । अपने पत्र में आपने प्रस्ताव ५ पर मुझसे खास ध्यान देने और उसके सम्बन्धमें जल्दी ही उचित कार्रवाई करनेका आग्रह किया है। शायद आपको मालूम नहीं है कि अभी हालमें मैं बहुत सख्त बीमार हो गया था और हालांकि में अब ठीक हो गया हूँ, फिर भी अभी पहले जैसा स्वास्थ्य प्राप्त करनेके लिए विश्राम ही कर रहा हूँ । डाक्टरोंकी सलाह है कि मुझे ज्यादा काम नहीं करना चाहिए। में उत्तर भारतका कोई अखबार नहीं पढ़ता । जिस एक मात्र पत्रके बारेमें कहा जा सकता है कि मैं उसे पढ़ता हूँ, वह है मद्राससे प्रकाशित 'हिन्दू' । कभी-कभी बम्बईसे प्रकाशित अंग्रेजीके एक दैनिकपर भी नजर डाल लेता हूँ । इससे तो हिन्दू समाचार पत्रोंमें क्या निकला हैं उसके बारेमें कोई जानकारी मिलती नहीं । उक्त अखबारोंमें मैंने पैगम्बर साहब, या इस्लाम अथवा मुसलमानोंके खिलाफ कोई चीज नहीं देखी है। यदि आपके पास उन लेखादिकी कतरनें हों, जिनकी शिकायत प्रस्ताव ५ में की गई है तो मुझे भेजनेकी कृपा करें - जरूरी हो तो उधारके तौरपर ही । मैं उन्हें पढ़कर आपको लोटा दूंगा । निश्चय ही मैं उनके बारेमें अपना विचार लिखूँगा । जहाँतक 'रंगीला रसूल'[१] के मामलेमें दिये निर्णयका[२] सम्बन्ध है, आप बुरा न मानें तो कहूँगा कि इस सिलसिले में चलाया जा रहा पूरा आन्दोलन दुर्भाग्यपूर्ण और अनुचित है । मैं इस निर्णयका औचित्य नहीं सिद्ध करना चाहता, लेकिन यह जरूर मानता हूँ कि न्यायमूर्ति दिलीपसिंह के खिलाफ जो कुछ कहा जा रहा है वह बहुत अनुचित है । हो सकता है, उन्होंने कानूनकी गलत व्याख्या की हो। यदि ऐसा हो तो इसका इलाज एक व्यक्ति के रूपमें न्यायाधीशकी निन्दा करना नहीं है । सही इलाज तो निर्णयके विरुद्ध अपील करना या अगर खुद कानून ही दोषपूर्ण हो तो उसमें संशोधन करानेके लिए आन्दोलन करना है ।

मैं 'रंगीला रसूल' के लेखकका बचाव नहीं कर रहा हूँ। यह बात आपके लिए शायद नई हो। मुझे कुछ वर्ष पूर्व इस पुस्तिकाको पढ़नेका अवसर मिला था और उसे पढ़कर मैंने 'यंग इंडिया' में उसकी कड़ी आलोचना की[३] थी। आपको शायद

  1. हजरत मुहम्मदकी निन्दा करते हुए 'रंगीला रसूल' नामकी एक पुस्तिका उर्दूमें लिखी गई थी। उसीके खिलाफ अदालतमें मुकदमा दायर किया गया था।
  2. देखिये " पत्र : एम० अब्दुल गनीको ", ११-८-१९२७ ।
  3. देखिए खण्ड २४, पृष्ठ २६८-६९ तथा ३७४-७६; तथा खण्ड• ३५ भी।