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१२३. पत्र : जे० बी० कृपलानीको

कुमार पार्क,बंगलोर

१० जुलाई ,१९२७

प्रिय प्रोफेसर,

महादेवको लिखे तुम्हारे पत्रके उत्तरमें मैंने कल तुम्हें एक तार भेजा है । अभीतक मैंने जान-बूझकर मलकानीके बारेमें तुम्हें कुछ नहीं लिखा था । उसने अपने त्याग- पत्रकी सूचना देते हुए मुझे पत्र लिखा था ।[१] पत्रने मुझे तोड़-सा दिया। क्योंकि मैं मलकानीको अपने ऐसे सहयोगियोंमें एक मानता था, जिनसे मैं कभी डिगनेकी आशा नहीं करता।[२] मुझे इस बात की चिन्ता नहीं थी कि मलकानीके त्याग-पत्रसे विद्यापीठ- का क्या होगा, लेकिन एक व्यक्तिका पतन हो गया, इस विचारने मेरे अन्तरतमको हिला दिया । यह अच्छी बात है कि उसने अपने कियेपर पश्चात्ताप किया है, लेकिन यदि तुम उसे विद्यापीठमें वापस नहीं लेते तो यह सर्वथा उचित है । जहाँतक उसका सवाल है, यदि वह थडानीको भी उसी तरह अशोभनीय ढंगसे छोड़कर चला आता है जिस तरह हमें छोड़कर चला गया था तो यह उसकी एक और भूल होगी । इसलिए उसकी यह इच्छा कि उसे तीन महीनेके पश्चात् अथवा यदि थडानी उसे इससे पहले मुक्त कर दें तो पहले ही वापस ले लिया जाये, मेरे खयालसे, सर्वथा उचित जान पड़ती है। और मेरा निश्चित मत है कि यदि उसे सच्चा पश्चात्ताप है तो उसको सिन्ध कालेज में स्थायी रूपसे नहीं रहना चाहिए। कारण यह है कि अगर तुम उसे फिर स्वीकार नहीं करोगे तो उसका मन निश्चय ही बहुत दुःखी होगा । अतएव उसके पत्रके सम्बन्धमें जो निश्चय करना है, वह केवल महाविद्यालयके हितको ध्यानमें रखते हुए करो। और यदि तुम समझते हो कि अन्य प्रोफेसर उसका वापस आना पसन्द नहीं करेंगे तो उसको फिरसे विद्यालय में रखने लिए मैं तुमपर जोर नहीं डालूंगा। क्योंकि इससे वह भी अटपटी स्थिति में पड़ जायेगा और जो प्रोफेसर उसकी वापसी पसन्द नहीं करते, उनका भी मन दुःखी होगा । इसलिए यदि तुम उसे वापस लेनेका निश्चय करते हो तो वह हार्दिक सर्वसम्मतिसे होना चाहिए।

हाँ, मुझे नये विनय मन्दिरके बारेमें कुछ-न-कुछ जानकारी प्राप्त होती रही है । मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि उसमें विद्यार्थियोंकी संख्या अधिक है। मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी। मैं आशा करता हूँ कि यह संस्था उत्तरोत्तर सफलता प्राप्त करेगी और चाहे इसमें एक बड़ी संख्या में विद्यार्थी भरती हों अथवा वर्तमान संख्या में भी कमी आ जाये, परन्तु इसके संस्थापक- जन कभी भी इसका परित्याग नहीं करेंगे।

  1. देखिए " पत्र : एन० आर० मलकानीको ", २६-६-१९२७ ।
  2. देखिए " पत्र : एन० आर० मलकानीको ", ९-७-१९२७ ।