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भाषण : अखिल कर्नाटक हिन्दी सम्मेलन, बंगलोरमें

यदि डा० दलाल अब ऑपरेशन करनेको तैयार हों तो मैं चाहूँगा कि तुम बवासीरका ऑपरेशन करवा डालो ।

कीकीबहन मुझे बीच-बीचमें छोटे-मोटे पत्र लिखती रहती है । जहाँ इस समय में कह सकता हूँ, यही कहूँगा कि अक्टूबरसे पहले मेरे वहाँ आनेकी उम्मीद तुम्हें नहीं करनी चाहिए।

हृदयसे तुम्हारा,

आचार्य कृपलानी

गुजरात विद्यापीठ

अंग्रेजी (एस० एन० १२६०३) की फोटो नकल से ।

भाषण : अखिल कर्नाटक हिन्दी सम्मेलन, बंगलोरमें[१]

१० जुलाई ,१९२७

आज तीसरे पहर मैजेस्टिक थियेटरमें अखिल कर्नाटक हिन्दी सम्मेलनका अधि- वेशन हुआ। इसमें बहुत बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए। . . . तीन बजेके लगभग महात्माजी सम्मेलन में आये और उन्होंने सम्मेलनकी उस दिन की कार्यवाहीका संचालन किया। इसके बाद उन्होंने पिछली हिन्दी परीक्षामें सफल हुए विद्यार्थियोंको प्रमाण- पत्र दिये । इनमें एक महिला भी थी, जो प्रथम श्रेणीमें उत्तीर्ण हुई थी। पुरस्कार- वितरण करनेके बाद हिन्दीमें बोलनेसे पहले महात्माजीने यह जानना चाहा कि कितने लोग अंग्रेजीमें भाषण पसन्द करेंगे। सभामें उपस्थित सब लोगोंने अपने हाथ उठा दिये। इसपर महात्माजीने मुस्कराते हुए उनसे कहा कि अब इसी तरह हाथ उठाकर आप लोग यह बताइए कि क्या आप मेरे भाषणका कन्नड़में अनुवाद चाहेंगे । इसके उत्तरमें सब लोगोंने, यहाँतक कि महिलाओंने भी, अपने हाथ उठा दिये । इसके बाद उन्होंने हिन्दीमें भाषण दिया और गंगाधरराव देशपाण्डेने उसका कन्नड़में अनुवाद किया । आन्दोलनकी उपयोगिताके बारेमें बोलनेके बाद महात्माजीने [ कहा[२] ]:

भारत आज दो भागोंमें बँटा हुआ है और विन्ध्यसे उत्तरके हिस्सेके लोगोंका दक्षिणके लोगोंके साथ कोई हार्दिक सम्बन्ध नहीं है । दक्षिण भारतका यह कर्त्तव्य है कि वह उत्तर भारतकी, जो कि दक्षिणसे बहुत बड़ा है, भाषा सीखे। एक ओर जहाँ मुझे हिन्दी भाषाके थोड़े-से ज्ञानके बलपर सिन्धसे लेकर बंगाल तककी यात्रा करने में सुविधा होती है, वहाँ इन भागों में अंग्रेजीके बिना अपनी बात को समझाना

  1. यह प्रथम अखिल कर्नाटक हिन्दी सम्मेलन था। यह ९ जुलाई को शुरू होकर १० जुलाई को समाप्त हुआ। गांधीजी इसमे आखिरी दिन गए थे।
  2. यह अनुच्छेद हिन्दू, १२-७-१९२७ से लिया गया है।