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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

असम्भव है । जबतक आप हिन्दी नहीं सीखते तबतक आप विन्ध्य पर्वतमालाकी उस दीवारको नहीं गिरा सकेंगे जो दक्षिणको उत्तरसे अलग करती है। मैं नहीं चाहता कि आप अपनी-अपनी मातृभाषाओंकी उपेक्षा करें - आपको उनपर उतना ही गर्व होना चाहिए जितना कि मुझे अपनी मातृभाषापर है - लेकिन यदि हम केवल गुजराती, बंगाली, तमिल और कर्नाटक नहीं बल्कि भारतीय बनना चाहते हैं, तो हमें हिन्दी सीखनी चाहिए। इसे सीखना कठिन नहीं है । जिन्होंने इस भाषाको सीखा है, उन्हें इसे सीखने में छः महीनेसे ज्यादा समय नहीं लगा है और वह भी सप्ताह में केवल दो घंटे देकर। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप अपना इतना थोड़ा समय मातृभूमिकी सेवा में लगायें ।

सामान्य भाषा और सामान्य लिपि दो भिन्न प्रश्न हैं । जहाँ हिन्दीके ज्ञानसे आप उत्तरके लोगोंके सम्पर्क में आ सकेंगे, और अपने हृदयकी भावना उनतक पहुँचा सकेंगे, वहाँ यदि आप अपनी-अपनी मातृभाषाओंके लिए देवनागरी लिपिको अपनायेंगे तो उत्तरके लोग आपके नजदीक आयेंगे ।

और अब प्रश्न उठता है धनका । मुझे खुशी है कि दक्षिण भारतने हिन्दी- प्रचारके लिए पैसा देना आरम्भ कर दिया है। लेकिन इस कार्यके लिए प्रतिवर्ष १०,००० रुपये खर्च करनेकी आवश्यकता है, और मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप इस राशिको दक्षिण भारतमें ही जुटानेकी व्यवस्था करें।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २१-७-१९२७

१२५. पत्र : मीराबहनको

[१० जुलाई,१९२७][१]

चि० मीरा,

तुम्हारा पत्र मिला। डाक्टरकी हिदायतोंका ठीक-ठीक पालन करना । वर्धा जानेके बारेमें जल्दबाजी करनेकी कोई जरूरत नहीं । तुम हिन्दीका अभ्यास वहाँ भी उतनी ही अच्छी तरहसे कर सकती हो। वर्धा जानेकी तभी सोचो जब तुम्हें लगे कि उसमें कोई अड़चन नहीं है और वहाँ जाना सर्वथा निरापद है । डॉ० हरि- लाल देसाई काफी सधे हुए और सतर्क आदमी हैं ।

मुझे हिन्दीमें पत्र लिखने के लिए अपने-आपको ख़्वाहमख्वाह परेशान न करो । लिखो अवश्य, लेकिन जब तुम्हारा मन करे तभी । तुम मसहरीका उपयोग बेहिचक करना । घूमने-फिरनेके लिए बहुत उतावली न करना।

  1. अन्तिम अनुच्छेदमें हिन्दी सम्मेलनकी चर्चाके आधारपर ; देखिए पिछला शीर्षक