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पत्र : गोपालरावको

आज एक और बैठक हुई थी, इस बार वह हिन्दीके लिए हुई थी । में अच्छी तरह निभा गया और मुझे कोई थकावट महसूस नहीं हुई ।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू ० ५२४५) से ।

सौजन्य : मीराबहन

१२६.पत्र : मीराबहनको

११ जुलाई ,१९२७

चि० मीरा,

आज तुम्हारा कोई पत्र नहीं आया; लेकिन तार आया, जिसे पाकर मुझे बड़ी खुशी हुई। यह तार पत्रसे भी बढ़कर है, क्योंकि इससे तुम्हारे ताजेसे-ताजे समाचारकी जानकारी प्राप्त होती है । शारीरिक स्वास्थ्यके लिए पेटका ठीक रहना कितना महत्त्व रखता है ! यह भी स्पष्ट है कि सिर्फ स्वास्थ्यके लिए भी यदा-कदा उपवास रखना एक अच्छी चीज है । लेकिन तुमको यह बात समझानेकी जरूरत नहीं है ।

१६ अगस्ततक मेरा पता बंगलोरका है। बीच-बीचमें कभी-कभी में एक-दो दिनोंके लिए बाहर भी जाता रहूँगा । लेकिन १६ अगस्ततक मेरा सदर मुकाम बँगलोर ही होगा ।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू ० ५२४८) से ।

सौजन्य : मीराबहन

१२७. पत्र : गोपालरावको

मौनवर, ११ जुलाई ,१९२७

तुम्हारा पत्र मिला । काका साहब जो कुछ कहते हैं उसपर तो तुम्हें विचार करना ही है ।

ब्रह्मचर्य का सम्पूर्ण रस तुम तुरन्त लूटना चाहते हो किन्तु यह इस तरह नहीं हो सकता। विवाह न करने में यदि तुम्हें सन्तोषका अनुभव होता हो तो न करना और न होता हो तो विवाहकी व्यवस्था करना । सन्तोषमें और रसमें भेद है, यह तो तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है ।

यह विचार कि आदर्श स्त्री मिल गई तो फिर पति-पत्नीको एक-दूसरे में विलीन हो जाना चाहिए एक बड़ा भ्रमजाल है। इसमें अनेक लोग फँसे हैं और