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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि तुम भी उसमें फँस जाओ तो कोई आश्चर्य की बात नहीं । यदि अन्ततक न फँसो रहो तो अवश्य आश्चर्यकी बात होगी ।

यदि हम विवाहित लोगोंको देखकर तुम्हें इस सत्यकी प्रतीति हो गई हो - और हो तो जानी चाहिए कि इनका अनुकरण करनेमें कोई लाभ नहीं है तो तुम अभी अविलम्ब नैष्ठिक ब्रह्मचर्य के आनन्दका अनुभव करनेका लोभ छोड़कर विवाहकी नीरसता अथवा यदि तुमने उसका कड़वापन देख लिया हो तो उसके कड़वेपनका ही विचार करना और उस विचारको दृढ़ करना । निरन्तर इस बातका ध्यान करना कि ब्रह्मचर्यमें क्या रस है यह तो भगवान् ही जानता है, किन्तु विवाहमें कोई रस नहीं है इसलिए मैं तो विवाह ही नहीं करूँगा ।

विवाह न करनेके लिए इससे उतरती श्रेणीका एक दूसरा विचार यह है : "मैं यह तो नहीं कहता कि मुझे विवाह करना ही नहीं है; अनुकूल परिस्थितियोंमें में विवाह करूँगा । किन्तु इस समय देश गुलाम है, स्त्रियोंकी स्थिति अत्यन्त दीन है और मैं इस काम में लगा हुआ हूँ इसलिए अभी तो मैं विवाह करनेकी बात नहीं सोच सकता। मुझे यह व्रत तो लेना ही चाहिए कि जबतक मेरी कल्पनाका स्वराज्य नहीं मिलता तबतक भले ही रम्भा भी आकर मुझसे पाणिग्रहणकी प्रार्थना क्यों न करे तो भी में विवाह नहीं करूँगा ।' यदि तुमसे बने तो इस विचारको धारण करना । अपनी कल्पना के स्वराज्यकी व्याख्या लिख डालना । मैं एक आसान-सी व्याख्या सुझाता हूँ - 'स्वराज्यका दिन तब आपा माना जायेगा जब चरखा सारे देशमें व्यापक हो जायेगा और विदेशी वस्त्रका सम्पूर्ण बहिष्कार हो चुकेगा ।' यह व्याख्या यदि तुम्हें कठिन लगे तो जो तुम्हें जँचे वैसी एक व्याख्या लिखकर और ऐसा व्रत लेकर कि इस व्याख्या के अनुसार जबतक स्वराज्य की प्राप्ति नहीं होती तबतक में विवाह नहीं करूँगा, अपनी इस प्रतिज्ञाकी एक नकल अपनी कोठरीमें ऐसी जगह टाँगना जहाँ उसे सब लोग देख सकें। एक नकल काका साहबको भेजना और एक मुझे ।

यदि यह भी न कर सको तो ऐसा विचार करना: 'मुझे विवाह करने की इच्छा है, मैं उसे रोक नहीं सकता । किन्तु जिस तरह सगी बहन से विवाह नहीं किया जा सकता उसी तरह में अपनी जातिकी किसी भी लड़कीसे विवाह नहीं करूँगा । मैं इन संकीर्ण बाड़ोंको तोड़ना चाहता हूँ। जिस लड़कीसे विवाह करूँगा उसे संस्कृत, मराठी, हिन्दी और गुजरातीका ज्ञान होना चाहिए। उसे पैसेका कोई लालच नहीं होना चाहिए। यदि उसके माँ-बाप हों तो विवाहमें उनकी सम्मति मिलनी चाहिए । उसे खादीके प्रति पूरा प्रेम होना चाहिए। मेरे जो अन्यान्य आदर्श हैं उनमें उसका भी विश्वास होना चाहिए और वे उसे समझमें आने चाहिए। उसे अस्पृश्योंके प्रति प्रेम होना चाहिए। शरीरसे बलवान होना चाहिए और किसी दूरके गाँवमें जाकर रहने के लिए तैयार रहना चाहिए और विवाहित ब्रह्मचर्यकी प्रसिद्ध मर्यादाका पालन करनेकी उसकी इच्छा होनी चाहिए।' यदि यह भी न कर सको तो समझ लेना कि ब्रह्मचर्य का पालन करना तुम्हारे बसकी बात नहीं है और जो पहला मौका हाथ आये तत्काल विवाह कर लेना । ऊपर लिखे अनुसार मर्यादाका पालन करनेका निश्चय