पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१९६

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१२८. पत्र : नाजुकलाल न० चोकसीको

बंगलोर

सोमवार, ११ जुलाई, १९२७


भाईश्री नाजुकलाल,

तुम्हारा पोस्टकार्ड मिला। ईश्वर मनुष्यको अपने पतनसे शिक्षा ग्रहण करनेका साधन देता है । तुम दोनोंको पुत्रकी प्राप्तिके रूपमें वैसा ही साधन प्राप्त हुआ है । किन्तु मोती यदि वह चाहे तो, उसके द्वारा अपने जीवनको सार्थक बना सकती है। तुम तो पेशेसे भी शिक्षक हो अतः अब में यह देखूंगा कि तुम अपने नवप्राप्त शिशुका पालन-पोषण किस प्रकार करते हो। यह पत्र मोतीको पढ़वा देना ।

बापूके आशीर्वाद

[ पुनश्च : ]

इस पोस्टकार्डको सँभालकर रखना ।

गुजराती (एस० एन० १२१४१ ) की फोटो नकलसे ।

१२९. पत्र : रेहाना तेयबजीको

कुमार पार्क,बंगलोर

१२ जुलाई, १९२७

प्रिय रेहाना,

केवल सिद्धान्तकी दृष्टिसे देखें तो इस बातमें कोई सन्देह नहीं है कि तुम्हें अपने मनपसन्द कपड़े पहनने और मित्रोंसे मिलने-जुलनेका अधिकार है । परन्तु जब किसी सैद्धान्तिक अधिकारको ठोस व्यवहारमें लानेकी बात आती है, तब व्यक्तिको असंख्य बातोंका खयाल करना पड़ता है । और मेरी सलाह यह है कि तुम जो कुछ भी करो, उसे करनेमें तुममें अपने प्रति इतना विश्वास हो कि तुम सारे विरोधका सामना कर सको और अपने आसपास के लोगोंको अपने कार्यके औचित्य के बारेमें यकीन दिला सको । क्या तुम माँके साथ उसी तरह खुलकर तर्क करती हो जैसा कि मुझे लिखे तुम्हारे पत्रोंमें झलकता है ? लेकिन तुम वैसा करती हो या नहीं, इसकी जाँच करनेके लिए मैं तुमसे एक बात पूछता हूँ। क्या तुम मुझे अपने पत्रके बारेमें अपने माता-पितासे बातचीत चलाने की अनुमति दोगी ? क्या तुम्हारा पत्र में उनके पास भेज सकता हूँ? में उत्तर देनेके बाद तुम्हारे सारे पत्रोंको नष्ट कर देता हूँ । तुम्हारे अन्तिम पत्रको जबतक तुम्हारा उत्तर नहीं आ जाता तबतक सँभालकर रख रहा हूँ । स्वयं उनके सम्बन्धमें और