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पत्र : रेहाना तैयबजीको

उन्होंने जिस ढंगसे अपने बच्चोंका लालन-पालन किया है उसके बारेमें जितना कुछ मैं जानता हूँ, उससे तो मुझे लगता है कि वे अपने बच्चोंकी भावनाका बहुत खयाल रखनेवाले अत्यन्त उदारमना माता-पिता हैं, और वे अपने वयस्क बच्चोंकी स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप नहीं करेंगे । इसलिए तुम्हारे हालके पत्रोंको पढ़कर मुझे आश्चर्य हुआ है। अतः में अभी इस समय तुमसे और कुछ नहीं कहूँगा और तुम्हारे उत्तरकी प्रतीक्षा करूँगा ।

इस बीच तुम्हें मेरा सुझाव यह है कि जिन चीजोंपर तुम्हारा कोई बस न हो, उनके बारेमें कोई चिन्ता न करो। यदि कपड़ों या मित्रोंके चुनाव में अथवा मित्रोंके साथ व्यवहार रखने में तुम अपने मनकी न कर सको तो यह समझो कि और भी बहुत-से लोग तुम्हारी जैसी ही स्थिति में हैं, और इस संसार में ऐसा एक भी मनुष्य नहीं जिसे मनचाहा करनेकी पूरी-पूरी स्वतन्त्रता हो । स्वतन्त्रतापर लगाये जानेवाले कुछ प्रतिबन्ध व्यक्तिको नीचे गिराते हैं, और कुछ ऊपर उठाते हैं। जिस प्रतिबन्धको मनुष्य भय या स्वार्थ अथवा ऐसे ही किसी अन्य कारणसे नहीं, बल्कि दूसरोंकी भावनाका खयाल करके अथवा स्नेह-भावके वशीभूत होकर स्वीकार करता है, वैसा कोई प्रति- बन्ध पतनकारी नहीं होता। मैं इस बातकी कल्पना भी नहीं कर सकता कि तुम किसी भी हालत में किसी भी तरहके भयके वशीभूत हो सकती हो ।

कल मैंने बहुत अच्छा संगीत सुना । यह संगीत पूरे एक घंटेतक चलता रहा । उस समय में कात रहा था । मुझे सारे समय तुम्हारी आवाजका ध्यान आता रहा, और यद्यपि वे दोनों आवाजें अच्छी थीं फिर भी मैंने महसूस किया कि तुम्हारी आवाज उनसे किसी तरह भी कम नहीं है, बल्कि मुझे तो तुम्हारी आवाज बेहतर ही जान पड़ी। लेकिन ऐसा शायद इसलिए लगा हो कि तुमपर मेरा विशेष स्नेह है। कुछ भी हो, तुम्हारे पास ऐसा मधुर स्वर है जिसे सुनकर अन्य लोग भी चिन्तामुक्त हो जायें तो फिर अपनी चिन्ताको दूर करनेके लिए भी तुम उसीका सन्धान क्यों नहीं करतीं ?

सस्नेह,

बापू

कुमारी रेहाना तैयबजी

साउथवुड

मसूरी

सं० प्रा०

अंग्रेजी (एस० एन० ९६०४) की फोटो नकलसे ।

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