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भाषण : मैसूरके विद्यार्थियोंके समक्ष, बंगलोरमें

नारायण बसते हैं। आपकी पढ़ाईपर जो पैसा खर्च होता है, वह सब इन्हीं गाँवोंसे आता है और आपकी शिक्षाका स्रोत दुःखमें डूबे हुए यही गाँव हैं । देशका २५ करोड़ रुपया शराबखोरी - जैसे बुरे व्यसनपर बरबाद होता है और क्या आप लोग, जो शहरोंमें रहते हैं, गाँवोंमें रहनेवाले अपने गरीब भाई-बहनोंके लिए दो पैसे भी नहीं दे सकते ? दो पैसे देकर उतना भर प्रायश्चित्त तो कीजिए । आज में आप सबको विदेशी कपड़े और टोपियाँ पहने देख रहा हूँ । हमारी सब बहनें भी विदेशी वस्त्र पहने हुए हैं। यह न कहिए कि ये वस्त्र मैसूरके बने हुए हैं, यह न भूलें कि ये वस्त्र विदेशी सूतके बने हुए हैं। आज मैं आपसे यह बात साफ-साफ कह दूं। आप खादी-भण्डारोंमें जायें और वहाँ जाकर चार-पाँच आनेमें खादीकी टोपी खरीदें, इन महँगी टोपियोंको त्याग दें तथा खादी खरीदकर पहनें। ऐसा करके आप देशकी सच्ची सेवा करेंगे ।

आज हम विद्यार्थी शब्दके सही अर्थको भूल गये हैं। प्राचीन कालमें जब सभी इसके अर्थको समझते थे तब विद्यार्थी शब्द से ब्रह्मचारी और ब्रह्मचारिणीका बोध होता था और इस शब्दका अर्थ ब्रह्मज्ञान रखनेवाला होता था । यह मुक्तिका परिचायक था, हमारी अपनी मुक्तिका; देशकी मुक्ति अथवा स्वतन्त्रताका । आज में आपसे पूछता हूँ कि आपमें से कितने विद्यार्थी ब्रह्मचारी और ब्रह्मचारिणी हैं ? क्या आप इन्द्रिय-निग्रहके बारेमें, भक्ति और सेवाके सच्चे मार्गपर चलनेके लिए मनको प्रशिक्षित करनेके सम्बन्धमें कुछ जानते हैं? आप जानते हैं हमारे पूर्वज क्या करते थे ? यदि आप लोग सच्चे ब्रह्मचारीके कर्त्तव्योंसे परिचित हो जायें, यदि आप सच्चे विद्यार्थी बन जायें तो आज देशमें जो दुःख-दर्द दिखाई देता है, वह न रहे । हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि, धर्मप्राण मौलवी और ईसाई सन्त हमारे लिए सच्चे ज्ञानका अक्षय और अमूल्य भण्डार छोड़ गये हैं, जिसका उपयोग करके हम दूसरोंके लिए उपयोगी हो सकते हैं और जिसका अवगाहन हमारे चित्तको प्रतिपल प्रभु - चिन्तन में रत रखेगा । यदि हम सच्ची मुक्तिकी इच्छा करते हैं तो हमें अपनी स्थूल इच्छाओंका परित्याग कर देना चाहिए। मैं यह नहीं कहता कि आपको युवावस्थामें ही सब प्रकारके मनोरंजन और आनन्दका परित्याग कर योगका अभ्यास करना चाहिए। लेकिन मैं चाहता हूँ कि आप अपने कर्त्तव्यको पहचानें और वही करें जो सच्चे विद्यार्थियोंको और ब्रह्मज्ञानके अभ्यासीको शोभा देता है। आजके नवयुवकोंका स्वास्थ्य वैसा नहीं है, जैसा कि प्राचीन ब्रह्म- चारियोंका हुआ करता था; आज वे थियेटर देखने जाते हैं, बुरी चीजें खाते और पीते हैं, इन्द्रियोंको तुष्ट करनेमें गर्वका अनुभव करते हैं। यदि आपका शरीर स्वस्थ नहीं है तो इस बातका मनपर भी प्रभाव होगा, और जब आपका मन स्वस्थ नहीं होगा तो आपको ईश्वरका और अपने कर्त्तव्यका ज्ञान भी नहीं हो सकता। फिर आपमें इन्द्रिय-निग्रह करनेकी इच्छा-शक्ति नहीं रह जायेगी, आप अपना बल-वीर्य खो बैठेंगे तथा दुर्बल एवं शिथिल हो जायेंगे। मैंने सुना है कि कुछ विद्यार्थी दिनमें सात-आठ बार कॉफी पीते हैं। में अपने नौजवान मित्रोंको याद दिलाना चाहूँगा कि मैं भी कभी विद्यार्थी था। मैं आपसे पूछता हूँ जब आपको प्यास लगे तब आप क्यों न शुद्ध जल अथवा दूध पियें और भूख लगनेपर ठीक खाना खायें । आप तरह-तरह की