पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२०६

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१३७. पत्र : शापुरजी सकलातवालाको

कुमार पार्क,बंगलोर

१३ जुलाई,१९२७

प्रिय मित्र,

भरूचाकी मार्फत आपका गत १६ जूनका पत्र मिला । आपने अपने पत्रमें जिस विचारका प्रतिपादन किया है, उसे मैं समझता हूँ और वह मुझे अच्छा भी लगा । टाटाके साथ आपके झगड़ेका निबटारा करानेमें[१] यदि मैं आपकी कुछ सहायता कर सकूं तो यह मेरे लिए प्रसन्नताकी बात होगी। लेकिन मैं अपनी मर्यादाओंको जानता हूँ और मैं चाहूँगा कि आप भी उन्हें समझें। मैं सिर्फ इतना ही कर सकता हूँ कि जो कुछ करूँ वह पण्डितजीके द्वारा करूँ और वह मैं कर रहा हूँ ।

हृदयसे आपका,


श्रीयुत शापुरजी सकलातवाला, एम० पी०

हाउस ऑफ कामन्स

लन्दन, एस० डब्ल्यू ० १

अंग्रेजी (एस० एन० १२५३२) की फोटो नकलसे ।

१३८. पत्र : डी० सी० बोसको

कुमार पार्क,बंगलोर

१३ जुलाई,१९२७

प्रिय मित्र,

इस बात के लिए मैं बहुत शरमिंदा हूँ कि अभीतक आपके पिछले सालके ३० जून- के पत्रका उत्तर नहीं दे पाया हूँ। फिर भी, आपको समय-समयपर यह तो सूचित करता ही रहा हूँ कि आपका पत्र मिल गया है और मुझे उसका ध्यान है । इस देरी के लिए मैं अपने सहायकोंको दोषी नहीं ठहराना चाहता। कुछ देर तो अनिवार्य थी और कुछ कामोंको टाला जा सकता था, मगर पत्रके इधर-उधर हो जानेसे ऐसा न किया जा सका। फिर भी, मैं समझता हूँ उत्तर देने में अभी बहुत देर नहीं हुई है।

आपके अंग्रेज मित्रने आपको जो सलाह दी है और जिसे आपने पत्रके अन्तमें उद्धृत किया है, उससे मुझे सहमत हो सकना चाहिए। यदि सचमुच कोई और उपाय

  1. सकलातवाला लन्दन में टाटा पेढ़ीके एक पदाधिकारी थे। उन्हें त्यागपत्र देने को मजबूर किया गया था। यहाँ तात्पर्य उसी मामलेसे है।