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पिंजरापोलोंका सुधार

वे लोगोंके पास ज्ञाता और उद्धारकके रूपमें नहीं, बल्कि उनके समाजकी ही एक इकाईके रूपमें जायें, उन्हें अनुगृहीत करनेके लिए नहीं, वरन् उनकी सेवा करने और उनके बीच काम करनेकी भावना लेकर जायें ।

श्री बियरम : धन्यवाद । हम अगले वर्ष डेनमार्क जा रहे हैं और अपने साथ आपसे कोई सन्देश ले जाना चाहते हैं ।

[ गांधीजी : ] जो बाहर दिखाई देता है वह वस्तुतः अन्तरकी अभिव्यक्ति होता है, और यदि डेनमार्कके लोग सचमुच हमारी सेवा करना चाहते हैं तो उन्हें चाहिए कि वे हमें सहकारी दुग्धालय और पशुपालनका जीवनदायी व्यवसाय सिखायें ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १४-७-१९२७

१४४. पिंजरापोलोंका सुधार

स्वास्थ्य लाभ के लिए अपने बंगलोर निवासके दौरान इम्पीरियल ऐनिमल हस्बे- डरी ऐंड डेयरी इंस्टिट्यूट (राजकीय पशुपालन व दुग्धशाला संस्थान) को देखनेके लिए मैं बराबर जाता रहा हूँ और वहाँ, जिसे नियमित सबक कहा जा सकता है, वैसा सबक लेता रहा हूँ । राजकीय दुग्धालय विशेषज्ञ और इस संस्थानके प्रधान श्री विलियम स्मिथ तथा उनके सहायकोंने मुझे संस्थानकी कार्यप्रणाली तथा इसके अलग-अलग विभागोंको बहुत अच्छी तरह दिखाया है। मुझे विश्वास है कि इस प्रकार मैं जो भी ज्ञान अर्जित कर पाया हूँ उसका उपयोग में अखिल भारतीय गो-रक्षा संघकी ओरसे सत्याग्रह आश्रम में किये जा रहे दुग्ध-व्यवसाय सम्बन्धी प्रयोगोंके संचालन में करूँगा । श्री स्मिथके साथ मैंने इस विषय पर कई बार बातचीत की और फलतः उनसे पिंजरापोलोंके प्रबन्ध और हमारे गाँवोंमें पशु-पालनके तरीकोंके बारेमें टिप्पणियाँ तैयार कर देनेका अनुरोध किया। उन्होंने मेरा अनुरोध तत्काल स्वीकार कर लिया । उनकी दो मूल्यवान टिप्पणियाँ मुझे मिल चुकी हैं। नीचे में पिंजरापोलोंके विषयमें उनकी टिप्पणी दे रहा हूँ :

मौजूदा पिंजरापोलोंमें से कुछ एकका प्रबन्ध, जिन्हें किसी हदतक स्थायी और सुनिश्चित आमदनी होती है, काफी अच्छा है। उनमें थोड़े-से ऐसे पशुओं को भी जो बूढ़े हो जानेके कारण आर्थिक दृष्टिसे लाभदायक नहीं रह गये हैं, आराम के साथ और काफी अच्छी तरह रखा जाता है। लेकिन, इनमें से बहुत-सी संस्थाओंके लिए यह एक आम बात है कि जब-जब व्यापारमें मन्दी आ जाती है और चन्दा भी देरसे मिलता है तब यहाँ पशुओंको फाकेकी हालत- में रखा जाता है। निश्चय ही इससे उन्हें बहुत कष्ट होता होगा। और अन्तमें वे भूखसे दम तोड़ देते होंगे। ऐसे मामलों में गोशाला उनके लिए शरण-स्थल न होकर वध-स्थल बन जाती है, और वहाँ वधका तरीका होता है भूखसे तड़पा-