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पिंजरापोलोंका सुधार

लेनेकी सावधानी बरतनी चाहिए। यह विभाग अपने इलाकेके सभी अनुपयुक्त पशुओं को मुफ्त बधिया करनेका भी काम अपने हाथोंमें ले सकता है।

भैंसोंकी नस्लको सुधारनेके लिए कोई खास कदम उठानेकी आवश्यकता नहीं है। भारत किसी भी ऐसे ढोरको नहीं रख सकता, जिसमें दोनों गुण न हों अर्थात् मादा दूध दे और नर हल तथा गाड़ी खींचे और बोझा उठाये । मोटे तौरपर देखें तो भैंसा खेत जोतने या गाड़ी खींचनके लिए उपयुक्त जानवर नहीं है । फलतः जबतक वंश-वृद्धिके लिए आवश्यक भैंसोंको छोड़कर शेषको जन्म लेते ही मार नहीं डाला जाये तबतक ये देशपर भारस्वरूप बने रहेंगे। भारतके अधिकांश लोग किसी भी पशुको मारना पसन्द नहीं करते; और जो भी हो, भैंसोंका पालन करना और उनके मांसके लिए उनको मारना आर्थिक दृष्टिसे कोई लाभदायक बात नहीं है, क्योंकि भारतमें इस मांसकी कीमत लागत मूल्यसे कहीं कम है ।

भारतमें भैंसोंके होने और उनके बढ़नेका कारण गायोंसे कम दूध मिलना है। इसलिए पशुपालन के लिए किये जानेवाले हर तरहके प्रचारका उद्देश्य सभी नस्लोंकी गायोंकी दूध देनेकी क्षमतामें इतनी वृद्धि करना हो कि वे केवल उतना ही दूध न दें जिसे पीकर उनके बछड़े स्वस्थ और मजबूत हों, बल्कि इतना अधिक दें कि उससे उन्हें खिलाने-पिलाने का भी खर्च निकल आये। जब हम इस स्थितिको प्राप्त कर लेंगे तब भैंसों की कोई आवश्यकता नहीं रह जायेगी; और उनकी नस्ल आर्थिक कारणोंसे अपने आप समाप्त हो जायेगी । भारतके कई भागों में आज यह स्थिति है कि किसान बैल पानेके लिए दो-तीन गायें रखता है और अपनी जरूरतके घी और दूधके लिए एक या दो भैंसें रखता है; किन्तु यह स्थिति ज्यादा दिनोंतक नहीं चल सकती। यह बहुत महँगा पड़ता है और कोई कारण नहीं है कि इस समय बैलोंके लिए जो गायें रखी जाती हैं वही भविष्य में इतना दूध क्यों न दें जिसे उनके बछड़े भी पी सकें और जिससे किसानों की दूध और घीकी भी आवश्यकता पूरी हो जाये। मांसकी दृष्टिसे हमारे पशुओंकी कोई कीमत नहीं है अथवा बहुत कम है, और हम बैलोंके लिए गायें और दूधके लिए भैंसें नहीं रख सकते । गाय अकेले ही दोनों काम कर सकती है और उसे करना भी चाहिए। इन्हीं कारणोंसे पिंजरापोल संस्थाओंको अपने आपको गायोंकी देखभाल करने और उनकी नस्ल सुधारने के कामतक सीमित रखना चाहिए। हिन्दुस्तानमें खेती-बाड़ी गायोंकी बैल पैदा करनेकी क्षमतापर निर्भर है, भैंसपर नहीं; और देशके लोगोंका स्वास्थ्य गायोंके दूधसे ही ठीक रह सकता और सुधर सकता है। एक तरहसे देखा जाये तो इस देशमें भैंसोंके लिए कोई स्थान नहीं है । लेकिन वे इसलिए बीचमें आ पड़ी हैं कि गायें कम दूध देती हैं।

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