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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि सभी पिंजरापोल सचमुच ऐसे प्रशिक्षित व्यक्ति रखें जो उपर्युक्त ढंग से पिंजरापोलोंकी देख-भाल कर सकें तो वे निःसन्देह, भारतके लिए बहुत काम कर सकेंगे ।

पाठक देखेंगे कि श्री स्मिथने ऊपर जो कुछ भी लिखा है, वह मौजूदा पिंजरा- पोलोंकी अपनी सही जानकारीके आधारपर ही लिखा है । उन्होंने मुझे बताया कि उन्होंने अनेक पिंजरापोलोंको देखा है। उनके विचारसे पिंजरापोलोंका उद्देश्य बूढ़े और अन्य प्रकारसे निकम्मे पशुओंको शरण देना ही नहीं, गोरक्षा करना और लोगोंको गोरक्षाके उपाय बताना भी होना चाहिए। इसके लिए उनके पास सभी साधनोंसे युक्त एक आदर्श दुग्धालय और साँड़ विभाग होना चाहिए। मैं इनमें एक और विभाग भी जोड़ देता हूँ – अर्थात् चर्मशोधन विभाग। मैंने श्री स्मिथसे पिंजरापोलोंमें चर्मशोधन विभागकी भी व्यवस्था करनेके सम्बन्धमें बातचीत की। उन्हें यह विचार पसन्द आया, लेकिन चूंकि वे एक विशेषज्ञ हैं इसलिए वे अपने क्षेत्रके बाहर नहीं जाना चाहते थे । श्री स्मिथने भैंसोंके बारेमें बहुत सोच-विचारकर जो कुछ कहा है, वह ध्यान देने योग्य है । पशु वधके सम्बन्धमें वे हमारी तरह संवेदनशील नहीं हैं और न हम उनसे इसकी अपेक्षा ही कर सकते हैं, लेकिन वे यह समझते हैं कि कोई ऐसी योजना, जिसमें निकम्मे पशुओंको मार डालनेका सुझाव हो, भारतके लिए उतनी ही अनुपयुक्त होगी जितनी कि विश्वके किसी अन्य देशके लिए ऐसी योजना जिसमें बूढ़े और अपंग माता-पिताओंको मार डालनेका सुझाव दिया गया हो। इसलिए उन्होंने हिन्दुओंकी भावनाको समझनेकी अपने तई पूरी कोशिश करते हुए पशु-रक्षणके ऐसे उपाय सुझाये हैं, जो भारतीय परम्पराओंसे मेल खाते हैं। मैं आशा करता हूँ कि पिंजरापोलोंके व्यवस्थापक श्री स्मिथकी इस महत्त्वपूर्ण टिप्पणीमें दिये गये सुझावोंका अध्ययन करेंगे और अपनी व्यवस्थामें आवश्यक परिवर्तन करेंगे। मुझे विश्वास है कि इस परिवर्तनको लागू करनेमें बहुत कम खर्च आयेगा, लेकिन अन्तमें उससे काफी लाभ होगा। श्री स्मिथने मुझे जो एक और टिप्पणी तैयार करके दी है, उसके बारेमें में किसी आगामी अंकमें लिखूंगा ।[१]"

[ अंग्रेजी से ]

यंग इंडिया, १४-७-१९२७

  1. देखिए “ गाँवोंमें मवेशियोंकी दशाका सुधार", ४-८-१९२७ ।