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१४५. अखिल भारतीय लिपि

कुछ दिन पहले एक गुजराती सज्जनने 'नवजीवन' को एक पत्र लिखा था । उसमें मुझे सलाह दी गई थी कि मैं सारे भारत द्वारा एक ही लिपि अपनानेकी आवश्यकता के बारेमें अपने विश्वासको अमली रूप देनेके लिए 'नवजीवन' को देवनागरी लिपिमें छापना शुरू करूँ। मेरा यह दृढ़ विश्वास तो है कि सभी भारतीय भाषाओंकी लिपि एक ही होनी चाहिए और ऐसी लिपि देवनागरी ही हो सकती है, फिर भी मैं पत्र-लेखककी सलाहके मुताबिक काम नहीं कर सका। इसके कारण मैं 'नवजीवन' में अपनी एक टिप्पणीमें[१] गिना चुका हूँ । उन कारणोंको यहाँ दोहरानेकी आवश्यकता नहीं। परन्तु इस बात में जरा भी सन्देह नहीं कि इस महान् राष्ट्रीय जागृतिने हमें जो मौका दिया है, उसका उपयोग हमें एक लिपि अपनानेके विचारको प्रचारित करनेके लिए ही नहीं, बल्कि उस दिशामें कुछ ठोस कदम उठानेके लिए भी करना चाहिए। यह बिलकुल सही है कि इस तरहके एक सर्वांगपूर्ण सुधारके मार्ग में हिन्दुओं और मुसलमानोंका साम्प्रदायिक पागलपन एक बड़ा रोड़ा बना हुआ है । परन्तु भारतमें देवनागरी लिपिको सार्वभौमिक मान्यता तभी मिल सकेगी, जब पहले भारतके सभी हिन्दुओंको इस मतके पक्षमें कर लिया जाये कि संस्कृत और द्रविड़ भाषा-परिवारकी सभी भाषाओंकी लिपि एक ही हो। अभी इस समय बंगाल में बेंगला, पंजाब में गुरु- मुखी, सिन्ध में सिन्धी, उत्कलमें उड़िया, गुजरातमें गुजराती, आन्ध्रप्रदेशमें तेलुगु, तमिल- नाडमें तमिल, केरलमें मलयालम, कर्नाटकमें कन्नड़ लिपियाँ प्रयुक्त होती हैं। बिहारकी कैथी और दक्षिणकी मोड़ी लिपियोंको यहाँ चाहे न भी लेखें । यदि हम सभी व्याव- हारिक और राष्ट्रीय प्रयोजनोंके लिए इन लिपियोंके स्थानपर देवनागरी लिपिका ही प्रयोग करने लगें तो वह सचमुच एक भारी प्रगति होगी । उससे भारत भरके हिन्दुओं- की एकताको दृढ़ करने में मदद मिलेगी और विभिन्न प्रान्तोंके बीच अधिक निकटका सम्पर्क स्थापित किया जा सकेगा । भारतकी विभिन्न भाषाओं और लिपियोंकी, जानकारी रखनेवाले सभी लोग भली-भाँति जानते हैं कि किसी भी नयी लिपिको अच्छी तरह सीखने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है। कुछ लिपियाँ तो सचमुच बड़ी सुन्दर हैं, और फिर देश-प्रेमकी खातिर कोई भी काम दुष्कर नहीं होता, इसलिए भिन्न-भिन्न लिपियोंको सीखनेमें जो श्रम और समय लगता है वह किसी भी तरह व्यर्थ में गँवाया गया नहीं माना जा सकता। लेकिन करोड़ों साधारण जनोंसे तो हम इस त्यागकी भावनाकी उम्मीद नहीं कर सकते । राष्ट्रके नेताओंको उनके लिए चीजोंको आसान बनाना पड़ेगा। इसलिए हमारी एक ऐसी लिपि होनी चाहिए, जिसे सारे भारतके सभी लोग अपनी-अपनी भाषाओंकी जरूरतोंके अनुसार आसानीसे ढालकर अपना सकें; और सभी भाषाओंकी जरूरतोंके अनुसार ढल सकने की जितनी

  1. देखिए " नवजीवन देवनागरीमें", २६-६-१९२७ ।