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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

था, उसपर मैंने विस्तारसे अपना कोई मत व्यक्त नहीं किया और मैंने अपने-आपको प्रतिवादतक ही सीमित रखते हुए, देशमें मौजूद आम हिंसात्मक वातावरणके बारेमें अपना मत व्यक्त किया था । और मुझे कहना ही पड़ेगा कि मेरा पत्र जिन लोगोंको दिखा दिया गया था, यदि वे उसमें दिये गये तर्कोंसे सहमत नहीं थे तो फिर मेरे उसी निजी पत्रको साधन बनाकर नागपुर सत्याग्रह स्थगित कर देना उस पत्रका एक बिलकुल ही गैरमुनासिब इस्तेमाल था । और फिर उन लोगोंने जब मेरे पत्रका सार्वजनिक ढंगसे उपयोग करनेका फैसला किया था तो मेरे प्रति उनका यह भी कर्त्तव्य था कि वे उसके उन सभी मुद्दोंको लोगोंको अच्छी तरह समझा देते जिनको वे समझते नहीं थे या जो उनको मेरे पिछले लेखोंको देखते हुए असंगत लग रहे थे । और नागपुरके उत्साही युवकोंके प्रति उनका कर्त्तव्य यह था कि वे उनके सामने ख़्वाहमख्वाह एक ऐसा मत रखकर, जिसे वे न तो समझते थे और न जो उनको स्वीकार था, उनके उत्साहको भंग न करते, उन्हें हताश न करते । जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, देशमें जो तरह-तरह के पागलपनके काम हो रहे हैं, उनके बारेमें अपनी राय जाहिर करते फिरना मैं अपना फर्ज नहीं समझता । कारण यह है कि मेरे अन्दर इतनी विनम्रता जरूर है कि मैं समझू कि मुझे जो काम पागलपन-भरा लगता है, हो सकता है, स्वयं करनेवालोंको वह पागलपन-भरा न लगता हो और वास्तवमें वह बुद्धिमत्ताका श्रेष्ठ उदाहरण ही हो। इसलिए यद्यपि सत्याग्रहके नामपर कई जगहों पर बहुत-सी चीजें की जा रही हैं फिर भी मैंने उनके बारेमें एक शब्दतक कहनेकी जरूरत नहीं समझी। और नागपुरके नवयुवकों तथा सभी सम्बन्धित व्यक्तियोंको मेरी यही सलाह है कि यदि वे कांग्रेसके नामका इस्तेमाल नहीं करते तो वे किसी भी अन्यायपूर्ण कार्यके विरुद्ध सत्याग्रह करने या उसका अन्य प्रकारसे प्रतिरोध करने के लिए कांग्रेसकी अनुमति लेना किसी भी तरह अनिवार्य न मानें। और यदि वे सचमुच ऐसा मानते हों कि नागपुर सत्याग्रह सर्वथा उचित था, और वह वास्तव में सत्याग्रह ही था, तब तो उनके द्वारा अपना आन्दोलन फिरसे न छेड़नेका मतलब अपने बन्दी साथियोंके साथ धोखेबाजी करना, उन्हें संकटमें छोड़कर उनसे अलग जा खड़े होना होगा । हाँ, अगर वे मेरे इस मतसे सहमत हों कि जिसे वे सत्याग्रह समझते थे वह वास्तव में सत्याग्रह था ही नहीं, तो दूसरी बात है ।

इतने स्पष्टीकरणके बाद, अब में सत्याग्रहके बारेमें अपने उन सदाशय मित्रों द्वारा पैदा की गई कुछ उलझनोंको दूर करनेकी कोशिश करूँगा, जिन्होंने मेरे उस पत्रकी आलोचना की है। मेरा निश्चित मत है कि शस्त्र अधिनियम (आर्म्स एक्ट) को सत्याग्रहके तरीके से उस ढंगसे भंग करना उचित नहीं था जिस ढंगसे उसे नागपुर में किया गया। हमें याद रखना चाहिए कि नागपुरकी रिपब्लिकन आर्मी और सरकारके बीच विवादका खास मुद्दा शस्त्र अधिनियम नहीं, बल्कि अनेक नवयुवक बंगाली देश- भक्तोंकी अन्यायपूर्ण और गैरकानूनी नजरबन्दी थी । इसलिए उस अधिनियमको लेकर सविनय अवज्ञा आन्दोलन छेड़ना हर तरहसे गलत था । कई वक्ताओं ने मेरे पत्रका कुछ ऐसा अर्थ लगाया है जो मेरे विचारसे, न तो उससे निकलता है और न कभी