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सत्याग्रहकी सीमाएँ

मेरे मन में ही था। मैंने तो बहुत पहले, १९१७ या १९१८ में ही, कहा था कि सरकारके काले कारनामोंमें सबसे ज्यादा शर्मनाक कारनामा जनताको निःशस्त्र बनाना ही है। और अहिंसामें पूर्ण विश्वास रखते हुए भी, मैं मानता हूँ कि शस्त्र रखनेके इच्छुक हर भारतीयको पूरा अधिकार है कि वह कानूनी ढंगसे अनुमति लेकर शस्त्र रखे। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि हर अच्छी सरकारके लिए शस्त्र अधिनियम आज जरूरी है और आगे भी रहेगा। मैं इस बातको नहीं मानता कि हर नागरिकको बिना लाइसेंसके चाहे जितने शस्त्र रखनेका सहज अधिकार है। इसके विपरीत, मैं तो यह मानता हूँ कि सुशासनके लिए यह नितान्त आवश्यक है कि राज्यको संविहित शर्तोंके अतिरिक्त अन्य किसी भी तरहसे शस्त्र रखनेपर पाबन्दी लगानेका पूरा अधिकार हो। मैं मानता हूँ कि अन्यायपूर्ण शस्त्र अधिनियम या उसके अन्यायपूर्ण प्रशासनके विरुद्ध भी किन्हीं परिस्थितियोंमें सत्याग्रह छेड़ना संगत हो सकता है ठीक उसी तरह जैसे कि मेरे विचारसे चोरी तथा अन्य अपराधोंको रोकने के लिए बनाये गये किसी अधिनियम के विरुद्ध कभी-कभी सत्याग्रह करना उचित हो सकता है। लेकिन मेरा निश्चित मत है कि जिस तरह अपराध अधिनियमके विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलनका तरीका उससे सम्बन्धित विशिष्ट अपराध करना नहीं हो सकता, उसी तरह एक अन्यायपूर्ण शस्त्र अधिनियम के विरुद्ध सत्याग्रह करनेका यह तरीका नहीं हो सकता कि हम शस्त्र लेकर चलने लगें ।

हमें सत्याग्रह और सविनय अवज्ञाके बीचका अन्तर भी स्पष्ट समझ लेना चाहिए। सविनय अवज्ञाके सभी रूप सत्याग्रहके ही अंग या समझिए शाखायें हैं, लेकिन सत्याग्रहके सभी रूप सविनय अवज्ञा नहीं होते । अब चूंकि नागपुरके मित्रोंने अपना तथाकथित सत्याग्रह या सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित कर ही दिया है, इसलिए मैं उनको तथा अन्य लोगोंको भी जतला देना चाहता हूँ कि बंगालके नजरबन्दोंके सिलसिले में वैध तरीके से सत्याग्रह कैसे किया जा सकता है। लोग अगर मुझपर गुस्सा न हों या मेरी खिल्ली न उड़ायें तो में शुरू यहींसे करूँ कि खादीके कार्यके जरिये जनताकी ताकत बढ़ाकर और खादीके जरिये विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार करके सत्याग्रह किया जा सकता है। लोग हिन्दू-मुस्लिम एकताका मार्ग प्रशस्त करके सत्या- ग्रह कर सकते और उसका मार्ग प्रशस्त करनेका तरीका यह है कि वे दोनोंके झगड़ोंके अवसरोंपर अपने सिर फूटने दें और झगड़े न होनेकी स्थितिमें अपनेसे भिन्न धार्मिक विश्वासवाले लोगोंकी सेवामें बिना किसी दिखावेके रत रहें। यदि इस प्रकारके रचनात्मक कार्यों में उनको कोई रस न आये, और चारों ओर व्याप्त मन, वाणी तथा कर्म की हिंसाके बावजूद सविनय अवज्ञासे कम कोई बात जँचती ही न हो तो उनको मैं व्यक्तिगत सविनय अवज्ञाका निम्नलिखित तरीका सुझाता हूँ । इसे अकेला व्यक्ति भी कर सकता है। उसे यह आशा तो नहीं करनी चाहिए कि इससे नजरबन्द तुरन्त रिहा कर दिये जायेंगे; हाँ, यह आशा वह अपने मनमें अवश्य सँजो सकता है कि ऐसा व्यक्तिगत त्याग अन्ततोगत्वा नजरबन्दोंकी रिहाई कराकर छोड़ेगा । तो इस व्यक्तिगत सविनय अवज्ञाका तरीका यह हो सकता है -