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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोगोंका एक जत्था, या केवल एक ही व्यक्ति नागपुरसे कलकत्ताके गवर्नमेन्ट हाउस- तक पद-यात्रा करे, और यदि पद-यात्रा सम्भव न हो या उसमें ज्यादा झंझट हो, तो रेल-यात्राके लिए अपने मित्रोंसे पैसे इकट्ठे करके कलकत्ता पहुँचे । कलकत्ता पहुँचनेपर एक ही सत्याग्रही गवर्नमेन्ट हाउसतक पद-यात्रा करे और जहाँ उसे रोका जाये वहीं रुक जाये । वह वहीं खड़े होकर नजरबन्दोंकी रिहाई या अपनी खुदकी गिरफ्तारीकी माँग करे। इस अवज्ञाकी विनयशीलता बनाये रखनेके लिए सत्याग्रहीको बिलकुल ही निहत्था रहना चाहिए और अपमान, ठोकरों या इससे भी बुरे बरतावको विनय- पूर्वक सहन करके अपनी माँगपर दृढ़ रहना चाहिए और अपनी गिरफ्तारीका जरा भी विरोध नहीं करना चाहिए। वह अपने साथ जेबमें अपना भोजन, पानीकी एक बोतल, अपनी तकली और अपने धर्मके अनुसार 'गीता', कुरान', 'बाइबिल', 'जेन्दावेस्ता' या 'ग्रन्थ साहब' की प्रति रख सकता है। यदि इस प्रकारके सच्चे सत्याग्रहियोंकी संख्या काफी हो जाये, तो वे अत्यन्त अल्प अवधिमें सारे वातावरणको अवश्य ही बदलकर रख देंगे। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि एक हल्की-सी फुहार एक ही दिन में भारतके मैदानी इलाकोंको हरी-भरी घासको चादरसे ढँक देती है ।

अब यहाँ यह प्रश्न सर्वथा संगत होगा कि 'यदि आप सचमुच इसे ठीक समझते हैं, तो फिर आप ही इसे पहले शुरू क्यों नहीं करते, फिर चाहे एक भी व्यक्ति आपके पीछे न चले ?' मेरा उत्तर है : मैं ऐसा वीरोचित कार्य कर सकने योग्य पवित्रता या खरापन अपने-आपमें नहीं पाता। मैं मन, वाणी और कर्मकी वह अपेक्षित पवित्रता पैदा करनेमें अपने जीवनका हर क्षण लगा रहा हूँ । परन्तु अभी तो जो स्थिति है, उसमें मैं मानता हूँ कि अनेक मनोविकार मुझे विचलित कर डालते हैं। मैं जिनको गलत मानता हूँ वैसे काम देखकर या उनके बारेमें सुनकर मेरा मन क्रोधसे भर उठता है । मैं अपने बारेमें विनम्रतापूर्वक इतना ही दावा करता हूँ कि मैं मनके इन विकारों और आवेगोंको बड़ी हदतक नियन्त्रित रख सकता हूँ और उनको अपने ऊपर हावी होनेसे रोक सकता हूँ । परन्तु इस प्रकारके वीरोचित कार्यके लिए पवित्रता- की मेरी अपनी कसोटी तो यह है कि गलत कामों या बुराईसे घृणा करते हुए भी मनमें ऐसे विकार या आवेग पैदा ही न हों। मैं जब यह महसूस कर लूंगा कि मैं बुराईकी बात भी सोचनेमें नितान्त असमर्थ हो गया हूँ, तब मैं किसी की सलाहके बिना भी इसमें कूद पडूंगा, चाहे सब लोग मुझे निरा पागल ही क्यों न कहने लगें । उस मनःस्थितिमें मैं वाइसराय भवनके दरवाजेपर दस्तक देनेमें या जहाँ भी ईश्वर मुझे भेजे वहाँ जाकर मटियामेट किये जा रहे अपने इस देशके अधिकारोंकी माँग करने में किंचित् भी नहीं हिचकूंगा । और मेरा विश्वास है कि ईश्वरसे भय खानेवाला हर व्यक्ति ऐसी आदर्श स्थितिको प्राप्त कर सकता है ।

इस बीच कोई सत्याग्रहका विद्रूप न करे; उसकी झूठी नकल न उतारे । यदि बन सके तो सत्याग्रहका खयाल मनसे बिलकुल निकाल दे और फिर जो उसके जीमें आये उसे निर्बाध रूपसे करनेके लिए उसके सामने सारा मैदान खाली पड़ा हुआ है। जिस समुद्रका मानचित्र न हो, जिसमें रास्ता दिखाने के लिए कोई प्रकाश स्तम्भ न