पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गन्दगी से बचकर रहना चाहते हैं तो आप सबको अपने शहरका भंगी आप ही बनना चाहिए। ...

अन्तमें मैं आपसे एक बात और कहूँगा । देशके दीन-दुःखी जनोंकी खातिर में आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप चरखा चलाना शुरू करें। यह मत कहिए कि आपके पास समय नहीं है। यदि आप सवेरे सात बजे सोकर उठते हैं तो मैं आपसे अनुरोध और विनती करता हूँ कि आप पाँच बजे उठें और दो घंटेके लिए चरखा चलायें ।

तो मैं आपसे कहता हूँ कि मैं आपके सामने जो चरखा रख रहा हूँ वह उद्यमका प्रतीक है, और आलसी लोग इसे नहीं चला सकते । समय ही सम्पदा है, और 'गीता' का वचन है कि जो समय नष्ट करते हैं, महाकाल उनका नाश करता है ।[१]"

प्रतिदिन दो घंटा चरखा कातकर आप देश और उसके करोड़ों गरीबोंके लिए बहुत कुछ कर सकेगें। मैं आपके पास यही माँगने आया हूँ। मैं आप सबको इस स्वागत और मानपत्रके लिए धन्यवाद देता हूँ । भगवान् आपका भला करे ।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, १८-७-१९२७

१४९. भाषण : तुमकुर प्राणी-दया संघमें[२]

१४ जुलाई, १९२७

भाइयो,

आपके मानपत्र और थैलीके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ । मुझे इस बातकी भी खुशी है कि आपने यह मानपत्र अपनी मातृभाषा में दिया है । आपने मुझे इसका अंग्रेजी अनुवाद दिया था, लेकिन मैंने उसे नहीं पढ़ा है। इसके विपरीत, जब उसे आपकी सुन्दर कन्नड़ भाषामें पढ़ा जा रहा था तब मैंने उसे ध्यानसे सुना और मैं काफी हदतक समझ भी गया, क्योंकि कन्नड़, तमिल, तेलुगु और इस देशकी अन्य सभी भाषाएँ हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दीकी बहनें हैं। आज सबेरे नगरपालिकाकी ओरसे दिये गये मानपत्रके उत्तरमें मैं गो-रक्षापर विस्तारसे बोला, और मैं आशा तथा कामना करता हूँ कि आप हमारे देशकी निरीह गायोंके लिए की गई मेरी प्रार्थनाको याद रखेंगे। शायद आप जानते होंगे कि इस उद्देश्यके लिए बेलगाँव में एक बड़ा संघ है और उन्होंने मुझसे उस संघका अध्यक्ष बननेका अनुरोध किया है। हमारे यहाँ साबरमती में भी एक ऐसी ही संस्था है । आपने आज मुझे जो धन दिया है, वह गो-रक्षाके निमित्त इसी संस्थाको दिया जायेगा। लेकिन हम वहाँ जो कुछ कर रहे हैं, में चाहता हूँ कि वह सब आप यहीं मैसूरमें करें। आपने हमारे कार्यके बारेमें 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' के पृष्ठों में पढ़ा ही होगा । मैं चाहता हूँ कि आप उस कार्यको

  1. यह अनुच्छेद ४-८-१९२७ के यंग इंडिया में प्रकाशित साप्ताहिक पत्र' से लिया गया है।
  2. गांधीजी हिन्दी में बोले थे।