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१५२. पत्र : मीराबहनको

कुमार पार्क,बंगलोर

१७ जुलाई,१९२७

चि० मीरा,

मैं दो दिन बाहर रहा और कल कोई तार नहीं आया । पर मैं समझता हूँ कि तुम अपने पिछले तारके मुताबिक कल साबरमती से वर्धाके लिए रवाना हो गई होगी । जब क्रिया नकारात्मक हो तब नकारात्मक क्रिया-विशेषण हमेशा क्रियाके साथ ही रहना चाहिए और जब कर्ताकी विशेषता कई शब्दों में बतलाई जाये, तो विशेषता बत- लानेवाला वाक्यांश कर्त्तासे पहले आना चाहिए। इसलिए तुम्हारा लिखा मूल वाक्य अब कोई नहीं बातचीत करनेके लिए अन्दर आयेंगे' इस तरह होना चाहिए : 'अब बातचीत करनेके लिए कोई अन्दर नहीं आयेंगे । '

वैसे तो तुम 'कोई सुधार' भी कह सकती हो, पर 'कुछ' कहना ज्यादा ठीक रहेगा । 'कुछ' परिमाणका सूचक है, और 'कोई' का प्रयोग अंग्रेजीके 'समवन' के अर्थमें होता है । लेकिन कभी-कभी 'कुछ' के स्थानपर 'कोई' का भी प्रयोग किया जाता है । जब भी परिमाण या मात्राका बोध कराना हो तो 'कुछ' शब्दके प्रयोग में गलतीकी गुंजाइश कम रहेगी । तुम 'कोई दूध' नहीं कह सकतीं, 'कुछ दूध' ही कहना पड़ेगा ।

तुम मेरी जानकारीके लिए मुझे बतलाओ कि कताई, प्रार्थना, रसोई, इत्यादिमें क्या सुधार चाहती हो। मैं तभी तुमको बतला सकूंगा कि तुमने जल्दबाजी में कोई गलत नतीजा तो नहीं निकाला; या अगर मैं तुम्हारे सुझावको मान लूंगा, तो वैसा सुधार करनेके लिए कह सकता हूँ ।

किसी भी व्यक्तिकी कड़ीसे कड़ी आलोचना करनेका अधिकार तभी प्राप्त हो सकता है जब वह पहले पड़ोसियोंको अपने स्नेह और अपने विवेकका पूरा-पूरा विश्वास दिला चुका हो, और जब उसे स्वयं इस बातका पूरा भरोसा हो जाये कि यदि लोग उसका निर्णय स्वीकार नहीं करेंगे या उसपर अमल नहीं करेंगे, तो भी उसका मन किंचित् भी क्षुब्ध नहीं होगा। दूसरे शब्दोंमें, आलोचना करने योग्य बननेके लिए यह जरूरी है कि व्यक्तिके मनमें प्रेम हो, चीजोंको सही और स्पष्ट रूपमें ग्रहण करनेकी क्षमता हो और वह व्यक्ति हर अर्थमें सहिष्णु हो ।

तुमने भणसालीके लिए 'इमोशनल' के अर्थमें 'भावनात्मक' शब्दका प्रयोग किया है । परन्तु यहाँ चूँकि तुम 'इमोशनल' शब्दसे उनका गुण नहीं, बल्कि अवगुण बताना चाहती हो, इसलिए 'भावनात्मक' शब्द ठीक नहीं है। हाँ, एन्ड्रयूजकी सराह- नाके तौरपर तुम उनको 'भावनात्मक' कह सकती हो। भणसालीके बारेमें तुम जो कहना चाहती हो, उसके लिए शायद 'स्वप्नावस्थ' शब्द ज्यादा ठीक रहेगा । अर्थात् वह व्यक्ति जो स्वप्नोंके संसारमें रहता है और यथार्थको नहीं देखता या शायद तुम