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पत्र : ए० आई० काजीको

भणसालीको सनकी कहना चाहती हो। वह उदात्त भावनाओंवाला व्यक्ति है । परन्तु मुझे उसके बारेमें कुछ चिन्ता होती जा रही है। एकाधिक व्यक्तियोंने मेरा ध्यान उसकी अतिभावुकताकी ओर आकर्षित किया है। तुम यदि उसको किसी तरह अपने प्रभावमें ला सकी हो, तो थोड़ा-बहुत पत्र-व्यवहार करके पूरी होशियारीसे उसके बारेमें उससे ही चर्चा चलाना । परन्तु तुम वही करना जो तुमको पसन्द आये। मैं तुम्हारा काम बढ़ाना नहीं चाहता ।

कल में मैसूर जा रहा हूँ और वहाँसे २३को लोदूंगा। अपने कार्यक्रमकी एक प्रति भेज रहा हूँ । यदि स्वास्थ्यने साथ दिया तो इस कार्यक्रमके मुताबिक चलूंगा । पर तुम अपने पत्र बंगलोर के पतेपर लिखती रहना । में कहीं भी रहूँ, एक दिनके अन्तरसे मुझे पत्र मिलते रहेंगे। कार्यक्रम अभी अस्थायी तौरपर ही बनाया गया है, इसलिए सावधानी रखना ज्यादा ठीक रहेगा ।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू ० ५२५० ) से ।

१५३. पत्र : ए० आई० काजीको

स्थायी पता : साबरमती आश्रम

१७ जुलाई,१९२७

प्रिय काजी,

लम्बे अर्से के बाद आपका खत पाकर बड़ी खुशी हुई। ट्रान्सवालसे मतभेदोंके बारेमें यहाँ इतनी दूरसे आपको कोई ठीक-ठीक सलाह दे पाना कठिन है । लेकिन मुझे आशा है कि श्री शास्त्रीके वहाँ पहुँच जानेसे मामला कुछ सुलझ गया होगा ।

मैंने जोहानिसबर्गसे तार मिलते ही उसका उत्तर भेज दिया था । आशा है, वह यथासमय मिल गया होगा। आगे जो कुछ हो उससे मुझे अवगत कराते रहिए ।

यह जानकर खुशी हुई कि मणिलाल दम्पती प्रसन्न हैं और दोनों राष्ट्रकी सेवा में लगे हुए हैं।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत ए० आई० काजी

दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कांग्रेस

१७५, ग्रे स्ट्रीट,

डरबन (नेटाल)

अंग्रेजी (एस० एन० १२३६१ ) की फोटो - नकलसे ।