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१५४. पत्र : विजयपाल सिंहको

कुमार पार्क,बंगलोर

१७ जुलाई, १९२७

प्रिय मित्र, आपका पत्र मिला। बादाम और अंगूरका उल्लेख मैंने उदाहरणके तौरपर किया था । स्थानीय तौर पर मिलनेवाले फल और मेवे निस्सन्देह सबसे अच्छे रहेंगे । परन्तु पोषक तत्त्वोंकी दृष्टिसे देखा जाये तो दूसरी तरहकी जलवायुमें डालके पके फलोंके सेवनमें भी कोई हर्ज नहीं; हाँ शायद विटामिनोंमें कुछ कमी हो जाती हो; किन्तु ये ताजा नींबूके रूपमें बड़ी आसानीसे सुलभ हो जाते हैं। हम गरीब लोगोंके लिए तो सबसे अच्छा आदर्श आहार शायद मूंगफली, नारियल और हरी सब्जियाँ ही हैं, जो कि हर कहीं सुलभ हैं। परन्तु मैं यह बिना किसी निश्चित अनुभवके कह रहा हूँ । इसलिए मैं लोगोंसे कहता रहता हूँ कि वे आहार सम्बन्धी प्रयोगोंके मामलेमें मेरी बात आँख मूंदकर न मान लें । परन्तु जिनके पास अपना कुछ प्रत्यक्ष अनुभव है और जिन्होंने विज्ञानकी क्रियात्मक शिक्षा पायी है, ऐसे लोग मनुष्यके लिए विभिन्न फलोंकी शारीरिक और मानसिक उपयोगिताओंका पता लगानेके लिए कुछ प्रयोग-परीक्षण करें तो सचमुच वे इस क्षेत्रमें काफी महत्त्वपूर्ण सेवा कर सकते हैं । और इस क्षेत्रमें अनुसन्धानकी सम्भावनाएँ अपरिमित हैं ।

स्वास्थ्य-रक्षाके लिए उपवास करते हुए काफी जल लेते रहना जरूरी होता है । मुझे खाली पानीसे मतली आने लगती थी, इसलिए मैं नमक और सोडा लिया करता था । दिल्लीके अनशन से पहलेके सभी अनशनों में मैंने शुद्ध जलके अतिरिक्त अन्य किसी चीजका सेवन नहीं किया था । परन्तु उससे मतली-सी आनेके कारण में अधिक मात्रा में जल भी नहीं ले पाता था । मेरे एक मित्रने अभी कुछ ही दिन पहले ४० दिनका उपवास पूरा किया था और वे उस दौरान पूरे परिमाणमें सिर्फ ताजा जल ही लेते रहे, किन्तु उनका स्वास्थ्य बहुत बढ़िया बना रहा ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत विजयपाल सिंह बी०ए०, एल-एल०बी०, एम० एल०सी०,

प्रेमभवन,

मेरठ

अंग्रेजी (एस० एन० १४१८४) की फोटो - नकलसे ।