पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१५६. पत्र : नरगिस कैप्टेनको

कुमार पार्क,बंगलोर

१७ जुलाई ,१९२७

तुम्हारा खत मिला । तुमने जिन छोटे-छोटे गाँवोंका वर्णन किया है, मेरी बड़ी इच्छा है कि उनको मैं पंचगनी जाकर खुद देख पाता। लेकिन अब ऐसा होगा नहीं क्योंकि मैंने थोड़ा-बहुत दौरा करना शुरू कर दिया है, और अगर मेरी सेहतपर इसका कोई बुरा असर न पड़ा तो यह सिलसिला सालके अन्ततक जारी रहेगा । इस परिस्थितिमें में तो यह चाहूँगा कि तुम कुछ बहनें मिलकर मेरे कन्धोंसे दौरोंकी यह जिम्मेदारी थोड़ी कम कर दो। तुम खुद दौरे करो। लेकिन चूंकि तुम लोग करोगी नहीं, इसलिए मुझ बेचारे एक साधारणसे आदमीको ही जगह-जगह झोली फैलाये घूमना पड़ेगा ।

मीठूबहन, रतनबह्न और जमनाबहन यहीं हैं और अभी कुछ दिन और रहेंगी । मीठूबहनने नफीस किस्म की खादी काफी मात्रामें बेच ली है ।

मुझे पता नहीं कि तुम्हारा मतलब मेरे बारेमें लिखी किस किताबसे है । जहाँ- तक मेरी जानकारी है, किसीने भी इधर दो-तीन महीनोंमें तो ऐसी कोई किताब नहीं लिखी है ।

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी (एस० एन० १४१८६) की फोटो नकलसे ।

१५७. पत्र : के० जे० नारायणन नम्बूद्विपादको

कुमार पार्क,बंगलोर

१७ जुलाई,१९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला । आपसे मेरा कहना यही है कि हमारे देशकी अस्पृश्यताके मूलमें अमीर और गरीबके बीचका भेदभाव नहीं है। मुझे तो लगता है कि इसके मूलमें जिनके पास किताबी ज्ञान है, उनका इस ज्ञानसे वंचित लोगोंके प्रति तिरस्कार- का भाव है, और यह भाव जान-बूझकर बरती जा रही क्रूरताकी चरम सीमातक पहुँच चुका है। धर्मकी आड़में किये जानेवाले अन्यायोंमें शायद यही सबसे जघन्य है, और आपको इसका समर्थन करते देखकर मुझे पीड़ा होती है और आश्चर्य भी ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत के० जे० नारायणन नम्बूद्रिपाद

वाडक्कांचेरी पो० ऑ०

(कोचीन राज्य)

अंग्रेजी (एस० एन० १४६२० ) की माइक्रोफिल्मसे ।