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भाषण : बंगलोरके मजदूरोंकी सभामें

मजदूरोंके कष्टोंसे बड़ी अच्छी तरह वाकिफ रहा हूँ । मैंने खुद भी वैसे ही कुछ कष्ट झेले हैं, इसलिए में जानता हूँ कि ऐसे मामलों में बाहरसे शायद ही कभी कोई सहा- यता मिलती है। हमें अपनी मदद आप ही करनी चाहिए, तभी ईश्वर हमारी मदद करेगा । मेरा अपना तो यही अनुभव है । दक्षिण आफ्रिकामें जिन दिनों इन कष्टोंका बोझ दुःसह बन गया था, तब हमने देखा कि दूसरा कोई भी हमारी मदद उतनी अच्छी तरह नहीं कर सकता जितनी कि हम खुद कर सकते हैं और हम धीरजके साथ स्वयं कोशिश करते रहे और सदा ही सही मार्गपर चलते रहे। ऐसा करनेसे ही हमको राहत मिली। अहमदाबादमें भी हमारा यही तजरबा रहा। मजदूरोंने किसी भी सम्पत्तिको आग नहीं लगाई, उन्होंने मालिकोंको डराया धमकाया नहीं, किसीको नुकसान नहीं पहुँचाया और वे सभी उचित तरीकोंसे, सही मार्गपर चलते हुए अपने उद्देश्यके लिए संघर्ष करते रहे। वे शान्तचित्त रहकर कष्ट सहन करते हुए संघर्ष करते रहे; उन्होंने अपने मालिकोंसे कहा : हम कष्टोंके भारसे दबे जा रहे हैं और तुम सुखी हो, ईश्वर तुमको और भी सुखी बनाये।" इसका ठीक असर पड़ा और सचाईकी जीत हुई ।[१] कष्ट सहनके शान्त और साहसपूर्ण मार्गपर इसी भावनासे चला जाता है । इसीको 'सत्याग्रह' कहते हैं। इसका मतलब है कि आप सत्यको आधार बनाकर ही अपना आग्रह करते हैं और अपने उद्देश्यके लिए संघर्ष करनेके दौरान कभी भी सत्य और औचित्य के मार्गसे भटकते नहीं हैं। इसका मतलब है सत्यकी विजय, इसका मतलब है अपनी मदद आप करना । याद रखिए कि आपको अपनी मदद स्वयं करनी है । यह मार्ग आपमें से प्रत्येक के लिए खुला हुआ है; नव- युवक हों, या बूढ़े सभी इसको अपना सकते हैं।

आपने मानपत्र में कहा है कि आपकी मिलोंमें कामकी परिस्थितियाँ अन्य मिलोंके मुकाबले ज्यादा कठिन हैं। में नहीं जानता कि इसमें कितनी सचाई है, लेकिन यदि यह सच है तो मुझे इसका दुःख है । लेकिन मैं एक बात जानता हूँ, और वह यह कि आपकी मिलके डायरेक्टर मेरे एक मित्र चन्दावरकरके दामाद हैं और वे आपके साथ पूरी सहानुभूति रखेंगे। उन्होंने मुझे मिलोंमें आनेको निमन्त्रित किया था और मेरी हर बात माननेकी बात कही थी। मैंने श्री राजगोपालाचारीको भेजा था । उन्होंने आपके यहाँ जाकर मामलेकी पूरी जानकारी हासिल की थी। यह बात आपकी हड़तालके दिनोंकी है। उसके बादसे अब आपकी क्या हालत है, में नहीं जानता । पर हालत जो भी हो, इतना आप हमेशा याद रखें कि इसमें आपको अपनी मदद आप करनी है, और आपको अपने पैरोंपर खड़ा होना सीखना है। मैं पूछता हूँ, क्या आप ऐसा कर सकते हैं? आप तो आपसमें ही लड़ रहे हैं, आप मिल-जुलकर कोई भी सम्मिलित प्रयास नहीं करते, और सच पूछिए तो अभीतक आपमें से सभीने अपनी दशा सुधारने के बारेमें सच्चे दिलसे सोच-विचार ही नहीं किया है; आपमें से कई लोग फालतू बातों में अपना समय गँवाते रहते हैं । आप दिलमें यह महसूस ही नहीं करते कि आपमें से एकका दुःख आप सभीका दुःख है । आप दारू पीते हैं,

  1. देखिए खण्ड १४ ।