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१६१. पत्र : जे० बी० कृपलानीका

१८ जुलाई, १९२७

प्रिय प्रोफेसर,

नानाभाईने मुझे बतलाया कि तुमने (लगभग ? ) ऐसी धमकी दी है कि यदि मलकानीको वापस नहीं लिया गया तो तुम भी विद्यापीठ छोड़ दोगे । यह रुख गलत है । तुम धमकियाँ देकर उदारता पैदा नहीं कर सकते। और यदि विद्यापीठ मलकानी- को वापस लेना ठीक नहीं समझता तो उसे उदारतासे रहित कैसे मान लिया जाये ? मलकानीको फिरसे रखनेका काफी विरोध किया जा रहा है, इसलिए उसको बहाल करनेका आग्रह गलत होगा। अपने मतपर फिर विचार करो ।

जो भी हो, मुझे मलकानीकी ओरसे अभी अन्तिम उत्तर नहीं मिला है। मैं उससे और उसके बारेमें पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ । मेरे लेखे तो मलकानीकी भूल समूचे राष्ट्रकी एक दुखद घटना है। उसकी पुनर्नियुक्ति तो कोई खास महत्त्वकी चीज नहीं। मेरे सामने तो एक ही प्रश्न है कि मलकानीके खण्डित व्यक्तित्वको जोड़कर फिरसे अखण्ड व्यक्तित्ववाले मनुष्यका रूप कैसे दिया जाये। मैं इसका हल निकालनेका भरसक प्रयास कर रहा हूँ।

सस्नेह,

बापू,

अंग्रेजी (एस० एन० १२६०९ ) की फोटो नकलसे ।