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१६२. पत्र : जे० बी० पेटिटको[१]

कुमार पार्क,बंगलोर

१९ जुलाई, १९२७

प्रिय श्री पेटिट,

श्री शास्त्रीके बारेमें मेरे पत्रपर[२] आपने तुरन्त कार्रवाई की, धन्यवाद । हाँ, मेरी तो यही राय है कि सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं कहना है। आपने जो बात कही है, मैं समझता हूँ कि उसमें बहसकी गुंजाइश है। सरकारी नौकरी-सम्बन्धी विनियमोंका मंशा यही है कि सरकारके किसी भी अधिकारीको उन लोगोंसे एक छदाम भी नहीं लेनी चाहिए, जिनकी उसे सेवा करनी है । परन्तु मुझे लगता है कि यदि कोई वाइसराय, उदाहरणके तौरपर मान लीजिए, अपने क्षेत्राधिकारसे बाहर भी भारत के लिए कोई अच्छा काम करना चाहे और इसके लिए वह इंग्लैंडके अपने मित्रों और सम्बन्धियोंसे सहायता प्राप्त करता हो तो उसे सार्वजनिक रूपसे ऐसी सहायता प्राप्त करनेसे रोका नहीं जायेगा । मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि श्री शास्त्रीके इस मामलेमें सरकार उचित सहायता नहीं करेगी।[३] मेरे पत्रका अभिप्राय इससे ज्यादा गहरा था । मेरा मत यह है कि सरकार शायद एक निश्चित

  1. उनके १६ जुलाईके पत्रके उत्तर में श्री पेटिटने उस पत्र में लिखा था कि [ इम्पीरियल सिटीजनशिप ] एसोसिएशन श्री शास्त्रोका खर्च नहीं उठा सकती। गांधीजीकी जानकारीके लिए, जे० बी० पेटिटके नाम एम० हबीबुल्लाका १२ जुलाई, १९२७ का एक पत्र भी उसके साथ भेजा गया था। हबीबुल्लाने लिखा था : " सरकार या उसके प्रतिनिधि ( एजेंट) को किसी भी गैर-सरकारी संस्थाकी रुपये-पैसेकी मददकी जरूरत पड़ने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। उनको ढाई हजार पौंड प्रतिवर्ष वेतनके रूपमें मिलेंगे, जो दक्षिण आफ्रिका के मन्त्री-परिषद् के स्तरके मन्त्रीको मिलता है। इसके अलावा पाँच सौ पौंड प्रतिवर्षका भत्ता और सरकार द्वारा किरायेपर लिया साज-सामान सहित एक बँगला और सरकार द्वारा ही खरीदी एक कार भी मिलेगी; साथमें कारके लिए दो सौ पौंड प्रतिवर्षका रख-रखाव भत्ता भी । उनको बँगलेके लिए अपने वेतनका दस प्रतिशत प्रतिवर्ष किरायेके रूपमें और फर्नीचर आदिके कुछ व्ययका दस प्रतिशत प्रतिवर्ष फर्नीचर के इस्तेमालके लिए अदा करना पड़ेगा। हमारी अपनी जानकारीके मुताबिक तो उनको आयकर नहीं भरना पड़ेगा।... 1. मुझे यकीन है कि आप भी मानेंगे कि इन शर्तोंको कोई भी कंजूसी-भरा करार नहीं कह सकता। "
  2. ५ जुलाई, १९२७ का पत्र ।
  3. भत्तोंकी राशि बढ़ानेके सुझाव रखे गये थे ।