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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सीमासे आगे नहीं जायेगी। जो भी हो, मैं इस बारेमें और अधिक बहस नहीं करना चाहता ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत जहाँगीर बी० पेटिट

पेटिट बिल्डिंग

३५९, हॉर्नबी रोड

फोर्ट

बम्बई

अंग्रेजी (एस० एन० १२३६७ ) की फोटो - नकलसे ।

१६३. पत्र : एन० वी० थडानीको

कुमार पार्क,बंगलोर

१९ जुलाई,१९२७

प्रिय थडानी,

आपका पत्र मिला । मेरी बात आपने कतई नहीं समझी। मुझे तो यह भो मालूम नहीं था कि आपका विद्यालय बस नामका ही राष्ट्रीय है। मेरी यह शिकायत तो थी नहीं कि मलकानी राष्ट्रीय विद्यालयको छोड़कर सरकारी कालेज में चले गये । यदि मलकानी महाविद्यालयसे सरकारी कॉलेजमें जानेकी बजाय ज्ञानकी तलाश में सर्वथा आत्म-त्यागकी भावनासे प्रेरित होकर उत्तरी ध्रुव चले गये होते, या मान लीजिए कि असहयोग आन्दोलनके ही परिणामस्वरूप स्थापित किये गये काशी विद्यापीठ या बिहार विद्यापीठमें भी गये होते और इन दोनोंसे मेरा भी थोड़ा-बहुत सम्बन्ध है, तो भी मेरी शिकायत अपनी जगह ज्योंकी-त्यों बनी रहती । और जिस ढंगसे आपने काम किया है, यदि श्रीप्रकाश बाबू और राजेन्द्रबाबू भी उसी तरह महाविद्यालय के अधिकारियोंकी आँख बचाकर मलकानीको बहका ले जाते, तो में उनके आचरणको भी असज्जनतापूर्ण ही मानता। इस मामलेसे मुझे इतना गहरा सदमा इसलिए लगा कि मलकानीके बारेमें मेरी राय बहुत अच्छी थी । मलकानीसे पहले दूसरे प्रोफेसर भी महाविद्यालय छोड़कर गये हैं। उनके आचरणसे मुझे कोई दुःख नहीं हुआ, क्योंकि उनसे मैंने कोई बड़ी आशा नहीं की थी। पता नहीं, मैं अपनी बात अब भी स्पष्ट कर पाया हूँ या नहीं । सिन्ध या गुजरात या किसी भी अन्य प्रान्तमें मैं कोई भेद-भाव नहीं बरतता । यदि मलकानी सिन्धमें कहीं तैनात होते और गुजरातका कोई आदमी उनको बहकाकर अपने यहाँ ले गया होता तो भी मुझे इतना ही बुरा लगता और मैं यही बातें कहता; वह इसलिए कि तब भी मेरी यही भावना होती कि मलकानीमें कमजोरी थी तभी तो वे लोगोंके बहकावे में आ गये ।