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पत्र : एन० वी० थडानीको

आपकी कठिनाइयोंको भी मैं किसी कदर कम करके नहीं आंकता, न आपके उद्देश्यकी अहमियत को ही कम समझता हूँ, लेकिन मुझे लगता यह है कि आपने अपना उद्देश्य पूरा करनेके लिए एक आपत्तिजनक रास्ता अपनाया । आप मलकानी- का मनोबल तोड़कर कभी भी सिन्धी नवयुवकोंका मनोबल दृढ़ नहीं बना सकते । गुजरातमें अपनी डूबती नौकामें पतवार सँभाले, भूखों मरते मलकानीको उनकी पत्नी और उनकी सास गुस्सा भरी आँखोंसे देख रही होतीं और उनके मित्र लोग मलकानीके पागलपनपर नाराजीसे बकझक कर रहे होते, यह एक ऐसा दृश्य होता जो मलकानीको आपके बच्चोंके आदर्श प्रोफेसर के रूप में उभारकर सामने लाता और सारा देश उस उच्चादर्शपूर्ण उदाहरणसे कुछ सीख सकता था । क्या अब भी मेरा अभिप्राय आप बिलकुल स्पष्ट रूपमें नहीं समझ पाये ? आप क्षण-भर के लिए भी अपने मनमें ऐसा विचार मत लाइए कि मैंने इसे इतना महत्व सिर्फ इसलिए दिया कि इससे गुजरात महाविद्यालय परेशानी में पड़ने जा रहा है। मैंने अपने जीवन में ऐसी अनेक संस्थाएँ बनते-बिगड़ते देखी हैं, और इनमें से कुछके साथ मेरा काफी गहरा सम्बन्ध भी रहा है। मेरे लेखे तो उनका महत्त्व इसी बात में निहित था कि उन्होंने देशके लिए कुछ वीर नवयुवक कार्यकर्त्ता प्रस्तुत करके अपना कर्त्तव्य पूरा कर लिया। आपको यह जानने में शायद दिलचस्पी होगी कि इस्तीफा वापस लेनेका जो पत्र मलकानीने भेजा था, उसे लेकर विद्यापीठकी सीनेटमें काफी गरमागरमी रही है। कई प्रोफेसरोंने जो पहले भी हमेशा ही मलकानीका थोड़ा-बहुत विरोध करते थे, मलकानीको फिर उसी पदपर बहाल करनेका बहुत ही सख्त विरोध किया। फिर इस सवाल के बारेमें मेरी राय पूछी गई। मैंने अपनी यही राय दी कि जब इतना विरोध हो रहा है तो मलकानीको बहाल नहीं करना चाहिए। खुद मलकानी के लिए और उन प्रोफेसरोंके लिए भी यह स्थिति बहुत अटपटी होगी। इससे महाविद्यालयका भी नुकसान होगा। इसलिए जहाँ- तक मलकानीका सम्बन्ध है, महाविद्यालय के हित-अहित के प्रश्नका जो फैसला होना था हो चुका है। हाँ, खुद मलकानीका सवाल जो हमारे लिए निरन्तर दुःख और चिन्ताका कारण बना हुआ है, ज्योंका-त्यों कायम है। मैं अपनी राय दे चुका हूँ । वह यह है कि मलकानी एक गलत कामपर दूसरा गलत काम करके सफेदी नहीं पोत सकते, और इसलिए अब उन्हें आपको तबतक छोड़कर नहीं जाना चाहिए जबतक कि आपको उस जगह के लिए कोई दूसरा आदमी न मिल जाये । परन्तु यदि आप मेरी राय पूछें, तो वह बिलकुल यही है कि मलकानीको तभीतक आपको संस्थामें रहना चाहिए जबतक कि उनका रहना बिलकुल अनिवार्य हो, आपको तुरंत ही उस पदके लिए दूसरे आदमीकी खोज शुरू कर देनी चाहिए, आदमी खोजने के लिए आपको एक अवधि निर्धारित कर लेनी चाहिए और उस अवधिमें आपको दूसरा आदमी मिले या न मिले, उसके समाप्त होते ही मलकानीको आपकी संस्थाको छोड़ देनी चाहिए और या तो अपनी पसन्दका कोई काम करना चाहिए या फिर मैं जो काम भी उनसे कराऊँ वहीं करना चाहिए। मैं आपको बता दूं कि में अबतक भी उस सदमेसे अपनेको पूरी तरह सँभाल नहीं पाया हूँ । बारडोलीके मामलेने भी मेरी नींद में कभी बाधा