पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२४५

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३. में कीर्तनों और नाटकोंमें काफी बड़ा अन्तर मानता हूँ । नाटकोंकी समस्या काफी गम्भीर है, और चूँकि आप अभिनेताओंके जीवन के बारेमें स्वयं सब कुछ जानते हैं, इसलिए उस पेशेसे दूर रहना ही ज़्यादा अच्छा रहेगा। लेकिन मुझे इसके सम्बन्धमें पूरी और प्रामाणिक जानकारी नहीं है । नाटकों का जन्म मानव जातिके साथ ही हुआ । में नहीं कह सकता कि नाटकोंने मानवको कितना उन्नत बनाया है । मैंने नाटकका इतिहास नहीं पढ़ा। इसलिए आपको मेरी रायको ही प्रमाण मानकर नहीं चलना चाहिए। इसमें आप या तो अपने ही विवेकसे काम लें या फिर किसी ऐसे पथ-प्रदर्शक- के पास जायें जो इसके बारेमें सचमुच आत्मविश्वासके साथ मार्ग-दर्शन कर सके और जिसके जीवनकी पवित्रताके बारेमें आप निःशंक हों। चौथे प्रश्नका उत्तर भी इसीमें आ जाता है ।

५. मैथुनमें पुरुष तो हर बार कुछ-न-कुछ जीवनी शक्ति खोता ही है, पर स्त्रियों में ह्रासकी यह प्रक्रिया केवल प्रसवसे आरम्भ होती है ।

६. एम० ब्यूरो महाशयने स्वप्न-दोषका कोई उल्लेख नहीं किया है । यह निस्सन्देह हानिकारक होता है । उन्होंने पुरुषके शरीरमें आवश्यकतासे अतिरिक्त पोषक तत्त्वों के वीर्य बननेका ही उल्लेख किया है, बस । लेकिन वीर्यका संवर्धन और संरक्षण करना अपेक्षित है, जिससे सन्तानोत्पत्तिकी इच्छा होनेपर उसका उपयोग किया जा सके अथवा उसे आत्मिक शक्तिमें रूपान्तरित किया जा सके । मेरा अपना यही विश्वास है । एम० ब्यूरो महाशयका भी यही मत है या नहीं में नहीं कह सकता, क्योंकि अभी मेरे पास यहाँ वह पुस्तक नहीं है।

आपके मित्रोंको अगर यह जानकारी रहे कि आपको दिये गये उनके उपहार सार्व- जनिक कार्योंके लिए ही उपयोगमें लाये जायेंगे, तो उन उपहारोंको स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं। हो सकता है कि अपने मित्रोंको उपहार देकर ही सार्वजनिक कार्यों में सहायता करना उन्हें ज्यादा अच्छा लगता हो । लेकिन इसमें भी कोई संदेह नहीं कि सबसे अच्छी बात तो यही होगी कि मित्रोंको ऐसा तरीका अपनानेसे विरत किया जाये ।

हृदयसे आपका,

श्री के० एस० कारन्त

मार्फत श्री जी० एन० पोई

निहालचन्द बिल्डिंग

न्यू क्वीन्स रोड

गिरगाँव, बम्बई

अंग्रेजी (एस० एन० १४१८७) की फोटो नकलसे ।

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