पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२४६

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१६५. पत्र : एम० एस० केलकरको

कुमार पार्क,बंगलोर

१९ जुलाई , १९२७

प्रिय डाक्टर,

आपकी विवेकपूर्ण चेतावनीकी कृपाके लिए धन्यवाद । मैं तो बस उसी डाक्टर- की सलाहपर चल रहा हूँ जो यहाँ बराबर मेरी जाँच करता रहता है । वह यहाँ विक्टोरिया अस्पतालका प्रधान है और एक काफी होशियार और सधे हुए चिकित्सकके रूपमें मशहूर है । फिर भी, इस बातका ख़याल रखते हुए ही दौरा करता हूँ कि मुझे कोई ज्यादा श्रम न पड़े। पर मैं आपको इस बात से बिलकुल सहमत हूँ कि यदि मैं समुद्र-तटके किसी स्थान में जमकर रहूँ तो ज्यादा अच्छा रहेगा । हाँ, आपके पत्रने मुझे और अधिक सतर्क कर दिया है। मैं अपनी सेहतका पूरा खयाल रखूंगा और आवश्यकता पड़नेपर अपने ऊपर और अधिक प्रतिबन्ध लगाने में संकोच नहीं करूँगा ।

मैं उत्तमचन्दके साथ सम्पर्क बनाये हूँ । मैं जानता हूँ कि उनके और काकासाहब- के भी स्वास्थ्यमें काफी सुधार हो रहा है । उनके स्वस्थ होनेका राज निश्चय ही आपकी चिकित्सामें होगा। मुझे यह जानकर भी बड़ी प्रसन्नता हुई कि गंगाबहनका स्वास्थ्य भी निरन्तर सुधर रहा है ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १४१८८ ) की फोटो - नकल से ।

१६६. पत्र : सूरजप्रसाद माथुरको

स्थायी पता : साबरमती आश्रम

१९ जुलाई,१९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मेरे जीवनका मौजूदा तौर-तरीका, मेरे पिछले जीवनकी प्रतिक्रिया के रूपमें समझना गलत होगा । में अपने पिछले जीवनकी स्वयं जो भर्त्सना करता हूँ, उसमें शायद अतिरंजना हो । याद रखने की बात यह है कि मैं अपनी भर्त्सना उसी मानदण्डको सामने रखकर करता हूँ जो मैंने अब अपने लिए निश्चित कर लिया है । अपनी पत्नीके साथ सहवासके दिनोंमें भी सम्पूर्ण संयमके जीवन के प्रति मेरे मनमें बड़ा आकर्षण था । किन्तु यद्यपि मेरी आत्मा तो ऐसे जीवन के लिए लालायित थी, फिर भी इन्द्रियाँ उसके साथ नहीं चल पाती थीं । में इन्द्रियोंको बड़े प्रयत्नके बाद ही काबूमें कर सका और ईश्वरने भी निश्चय ही इसमें मेरी सहायता की। वह इस