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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है जितना कि डिग्रीधारी डाक्टर लोगोंको। मैं ऐसे आयुर्वेदाचार्योंको भी जानता हूँ जो आजकल १,००० रुपये प्रतिदिन फीस लेते हैं । ऊँचे-ऊँचे आयुर्वेदाचार्योंकी फीस गरीबोंके बसकी नहीं होती । और दुर्भाग्य यह कि मैंने अनेकानेक मरीजोंको आयुर्वेदिक चिकित्सासे कोई लाभ न होता देखकर पाश्चात्य देशोंकी डिग्रियाँ प्राप्त चिकित्सकोंकी शरणमें जाते हुए भी देखा है। वैसे, मैंने इसका उलटा भी होते देखा है । लेकिन लगता है कि इस हालत में एलोपैथीका पलड़ा भारी रहा। मेरी अपनी इच्छा तो यही रही है और अब भी है कि आयुर्वेदिक पद्धति सफल सिद्ध हो; भले ही उसका कारण इतना ही हो कि मैं एक कट्टर शाकाहारी व्यक्ति हूँ और कई कारणोंसे जिन्हें यहाँ बताने की जरूरत नहीं, मेरे मन में एलोपैथी के प्रति एक बड़ा भय बना हुआ है । लेकिन आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दोनों ही प्रकारकी दवाइयोंके बारेमें थोड़ा-बहुत अध्ययन करके मैंने मामूली घरेलू चिकित्सा के लिए भी आयुर्वेदकी बजाय एलोपैथिक दवाओंका ही प्रयोग करना उचित समझा है। मिसाल के तौरपर मैं कह सकता हूँ कि मलेरिया के लिए कुनैन, मामूली दर्द के लिए आयोडिन और रोगाणुओंका नाश करके चीजोंको शुद्ध करन के लिए 'कोण्डीजफ्लुइड 'से ज्यादा कारगर कोई चीज मुझे दिखाई नहीं दी । लेकिन मैं अपने अनुभवोंका वर्णन करनेमें आपका समय नष्ट नहीं करना चाहता । यदि आपको असुविधा न हो तो कृपया अपनी इस बातका खुलासा कीजिए कि आयुर्वेदका उद्देश्य थोड़े समय के लिए रोगसे राहत दिलाने के बजाय शरीरके समूचे तंत्रको ही शुद्ध बनाना है । आपने जो पुस्तिकाएँ भेजने की कृपा की है, मैं उनको समय मिलनेपर अवश्य देखूंगा। मैं उन मित्रोंकी रायका भी इन्तजार करूँगा जिनको आपने मेरे पत्र दिखाये हैं । यदि पण्डित सातवलेकरसे आपको सम्बन्धित पुस्तकें न मिलें तो कृपया मुझे लिखिएगा ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत गंगाधर शास्त्री जोशीजी

९/२ सदाशिव पेठ

पूना सिटी

अंग्रेजी (एस० एन० १४१९०) की फोटो - नकलसे ।