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१६८. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

कुमार पार्क,बंगलोर

१९ जुलाई ,१९२७

प्रिय सतीशबाबू,

आपका पत्र उसी दिन मिला जिस दिन डॉ० राय यहाँ आये । उन्होंने मुझे प्रतिष्ठानके बारेमें बड़ी चिन्तनीय सूचना दी। उन्होंने बताया कि आपका स्वास्थ्य इस योग्य बिलकुल नहीं है कि आप काम कर सकें; फिर भी चूंकि सोदपुरमें आपकी उप- स्थिति जरूरी है इसीलिए आप कलकत्ता वापस जा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि क्षितीश बाबूपर कामका भार बहुत अधिक बढ़ गया है। मैं जानता हूँ कि डॉ० राय निराशाका पक्ष ही अधिक देख पाते हैं, इसलिए मैंने उनकी दी हुई सूचनाको उतना महत्त्व नहीं दिया । पर मेरा खयाल है कि सार रूप में उनकी बात सही है । इसलिए आप मुझे वहाँके कामका सारा हालचाल लिखिए। लेकिन मैं आपसे आश्वासन चाहता हूँ कि काम चाहे जिस प्रकारका भी हो, आप अपने ऊपर उसका अत्यधिक भार नहीं पड़ने देंगे। जानता हूँ, आप इसपर हँसेंगे और फबती करेंगे “ खुदरा फजीहत दिगरा नसीहत " । लेकिन सच मानिए, मैं समझता हूँ कि मैं अपनी शक्ति संरक्षित रखने का भरसक प्रयत्न करता हूँ। फिर मेरी रक्षाके लिए इतने सारे सतर्क लोग भी तो मेरे साथ रहते हैं। सचमुच मेरे लिए यह शर्मनाक बात है कि इतना सब होनेके बावजूद में जब-तब बीमार पड़ जाता हूँ । मुझे बीमारीसे अपना बचाव करनेमें समर्थ होना चाहिए था । लेकिन मैं पहले भी कई बार कह चुका हूँ कि मुझे इस सबकी समझ जीवनमें इतने विलम्बसे आई कि फिर अपने शरीरको सभी बीमारियोंसे लोहा लेने लायक बना पाना सम्भव नहीं रह गया । शक्तिकी मितव्ययिता की मेरी अपनी धारणाके मुताबिक मैंने तीस वर्षकी अवस्थातक तो शक्तिका अपव्यय करनेका कोई भी अवसर हाथसे नहीं जाने दिया था। इसके बाद ही मैंने सच्चे अर्थ में शक्तिका संरक्षण शुरू किया, लेकिन समझ धीरे-धीरे, थोड़ा-थोड़ा करके ही आई। मेरे जीवन में बीमारियोंका यह भी एक, लेकिन सबसे मुख्य कारण है । मैं चाहता हूँ कि मेरे सभी सहकर्मी मेरी गलतियोंसे सबक लें । लेकिन यह तो कोरी दार्शनिकता ही है। आप जानते ही हैं कि मैं क्या कहना चाहता हूँ । खादी या प्रतिष्ठान - दोनों एक ही हैं- किसीके भी सम्बन्धमें आप चिन्तित मत रहिए। होना यह चाहिए कि हमारे पास जितनी शक्ति है, स्फूर्ति है, अपने वश-भर हम उसका ज्यादासे ज्यादा उपयोग करते रहें; अपना काम पूर्ण विनम्रतापूर्वक करते रहें और फिर जनक महाराजकी तरह कह सकें " खादी रहे या जाये, इससे अन्तर क्या पड़ता है ? "

बंगालके दौरेके बारेमें यह है कि जबतक आप स्वयं दौरेकी भाग-दौड़ बर्दाश्त करने लायक स्वस्थ न हो जायें तबतक मुझे वहाँ बुलानेकी इच्छा न करें। आप