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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसके बारेमें तबतक लोगोंसे चर्चा मत कीजिए जबतक आप यह न देख लें कि आजमाइशके तौरपर किये जानेवाले मौजूदा दौरेमें मेरा स्वास्थ्य कैसा रहता है। मैं स्वीकार करता हूँ कि में बहुत ज्यादा चंगा नहीं हूँ और न बहुत ज्यादा शक्तिका ही अनुभव करता हूँ। पर मैं जिस डाक्टरकी देखरेख में हूँ, वह काफी होशियार और चौकस आदमी है। उसने मुझे बतलाया है कि रक्तके दबाव या किसी और बात में कोई बिगाड़ नहीं है और अब मैं बिलकुल अच्छा हूँ ।

हिन्दू-मुस्लिम समस्याको में अपने मनसे दूर ही रखता हूँ, क्योंकि उसके बारेमें सोचने से मुझे असहनीय पीड़ा होने लगती है । फिर भी वहाँ जो भी घटे, उसकी पूरी सूचना मुझे जरूर देते रहिएगा।

मैंने अपनी शक्ति बचानेके खयालसे ही हेमप्रभादेवीको अलगसे पत्र नहीं लिखा है । पर मुझे उनका ध्यान सदा बना रहता है ।

सस्नेह,

आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १९७८७) की माइक्रोफिल्मसे ।

१६९. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

मौनवार, आषाढ़ बदी ५ [१९ जुलाई, १९२७][१]

बहनो,

आज मुझे बहुतसे पत्र लिखने हैं, परन्तु इसे कैसे छोड़ा जा सकता है ? इसलिए एक बार में दो निशाने लगाने हैं। यह एक अंग्रेजी वाक्यका अनुवाद है । उसका शब्दार्थ यह है : एक पत्थरसे दो चिड़ियाँ मारना । ऐसी कहावतें तो वहीं गढ़ी जा सकती हैं जहाँ पग-पगपर हिंसा होती हो । मेरा अनुवाद भी दोषरहित नहीं है, फिर भी हम किसीको मारनेकी दृष्टि रखे बिना भी तो निशाना लगा सकते हैं ।

मुझे जो निशाने लगाने हैं, उनमें से एक तो है तुम्हें पत्र लिखना; और दूसरा चि० वसुमतीके पत्रका जवाब भी उसीमें दे देना । वह पूछती है : आप कहते हैं कि बहनोंको जैसे रोटी बनाना आना चाहिए, वैसे ही गीताका उच्चारण भी आना चाहिए। यह कैसे हो सकता है ? इसमें तो बहुत समय चला जायेगा । "

समय तो जायेगा ही, परन्तु दृढ़ संकल्पसे क्या नहीं हो सकता ? अधिक नहीं थोड़ा वक्त भी दिया जाये, तो काम हो सकता है। बड़ी उम्र में रोटी बनाने में भी मुसीबत होती है । फिर भी वह मेहनत से बन सकती है । बहनोंको उच्चारण नहीं आता,

  1. पत्रमें कर्नाटककी बहनोंके संस्कृत उच्चारणकी प्रशंसा की गयी है और आश्रमको बहनोंसे अपना उच्चारण सुधारनेका अनुरोध किया गया है। इसकी चर्चा पिछले एकाधिक पत्रोंमें है; और वे सब पत्र इसी वर्ष के हैं ।