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भाषण : मैसूर में विद्यार्थियोंके समक्ष

इसमें दोष उनका नहीं, माँ-बापका और विवाहित हों तो ससुरालवालोंका है। मगर औरोंका दोष देखकर हम क्यों रोयें ? दोष कैसे दूर किया जा सकता है, यह जान लें । आश्रम में हम अपनी ही बुराई देखते हैं और फिर उसे दूर करनेकी कोशिश करते हैं । इस कामके पीछे पागल होनेकी भी जरूरत नहीं है । आश्रमके दूसरे छोटे-मोटे जरूरी काम करते हुए जितना हो सके उतना प्रयत्न उच्चारणके लिए करें ।

मेरे लिखनेका मुद्दा तो यही था कि कर्नाटक में बहुत-सी बहनें गुजरातके पुरुषोंसे भी अधिक शुद्ध उच्चारण करती हैं ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६५८ ) की फोटो नकलसे ।

१७०. पत्र : जेठालाल गांधीको

बंगलोर

आषाढ़ बदी ५ [ १९ जुलाई, १९२७ ][१]

भाई जेठालाल,

तुम्हारा पत्र और स्नातकोंके बारेमें प्रकाशित तुम्हारी पत्रिका मिली। पत्रिका आज ही पढ़ पाया। में देखता हूँ कि इसमें तुमने खूब मेहनत की है। पत्रिका उपयोगी है । अवकाश मिलनेपर 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' में भी मैं उसका उपयोग करनेका विचार रखता हूँ ।

[ गुजरातीसे ]

बापूके आशीर्वाद साबरमती स्नातक विभाग, पुस्तक ६, संख्या ४, शिशिर १९८४, पृ० ३४

१७१. भाषण : मैसूर में विद्यार्थियोंके समक्ष[२]

१९ जुलाई, १९२७

प्रिन्सिपल साहब, आचार्यगण, बहनो और भाइयो,

आपने मानपत्र देकर मुझे सम्मानित किया है। इसी तरह इस देशके दरिद्र- नारायणकी सेवा के लिए ७०० रुपयोंकी एक थैली भेंट करके भी आपने मेरा सम्मान किया है। मैं इन दोनोंके लिए सच्चे मनसे आपको धन्यवाद देता हूँ । मुझे खेद है कि आपके सामने मैं अपना समूचा हृदय उँडेलकर नहीं रख सकता, जितना मुझे कहना है उतना सब नहीं कह सकता । गाँवों और शहरों दोनोंही जगह समान रूपसे आपने मेरे प्रति जो अपार कृपा दिखाई है, उसका मैं थोड़ेसे थोड़ा प्रतिदान भी नहीं दे सकता ।

  1. इस तारीखको गांधीजी बंगलोर में थे ।
  2. गांधीजीने हिन्दीमें भाषण दिया था और गंगाधरराव देशपाण्डेने उसका कन्नड़में अनुवाद किया था।