पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२५५

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१७३. पत्र : लीज बुर्जासको[१]

स्थायी पता : साबरमती आश्रम

२० जुलाई, १९२७

प्रिय मित्र,

गौरैयाकी[२] मार्फत आपका रुक्का पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई ।

ज्यों-ज्यों उम्र बीतती जाती है, जीव मात्रकी अभिन्नता के सिद्धान्तकी प्रतीति मुझे अधिकाधिक होती जाती है । किन्तु साथ ही मुझे उस सिद्धान्तपर चलना कम कठिन लगने के बजाय उत्तरोत्तर अधिक कठिन ही लगता जाता है । जबतक हम अपने 'अहं' को मिटाकर सर्वथा शून्य नहीं बना देते तबतक इस सिद्धान्तको चरितार्थ करना असम्भव मालूम होता है ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १२५२५ ) की फोटो - नकलसे ।

१७४. पत्र : हेलेन हॉसडिंगको

कुमार पार्क, बंगलोर

२० जुलाई, १९२७

प्यारी गौरैया[३],

तुम्हारा पत्र[४] मिला। तो तुम पत्र और पोस्टकार्डके बीच अन्तर मानती हो । मैं तो नहीं मानता। पर यह बतलाओ कि पोस्टकार्डको तुम पत्र क्यों नहीं मानती ? दोनोंमें अगर कोई अन्तर है तो वह डाक विभागके लिए ही है । परन्तु, चूंकि हम डाक विभाग में नहीं हैं और हमसे जहाँतक बन पड़े, हमें गरीब होनेके नाते अपने विचारोंके आदान-प्रदानका सबसे सस्ता साधन ही अपनाना चाहिए और पोस्टकार्ड में अगर हम अपनी सारी बात रख सकते हैं तो उसे पत्र ही मानना चाहिए ।

मुझे अब भी अपने पत्र बोलकर ही लिखाने हैं। कारण यह है कि यद्यपि मुझे ऐसा मरीज माना जा सकता है जिसे अस्पतालसे छुट्टी मिल गई है, फिर भी मेरी हालकी बीमारीकी याद मनमें अब भी बहुत काफी और ताजा है।

  1. लीज बुर्जा के २३-६-१९२७ के पत्रके उत्तरमें।
  2. हेलेन हॉसडिंग ।
  3. हेलेन हॉडिंगके स्वभावको देखते हुए स्नेह और विनोदसे गांधीजी उन्हें ' स्पेरो' (गोरैया ) कहा करते थे ।
  4. २५ जून, १९२७ का पत्र |