कृष्णदास अखिल भारतीय चरखा संघके कामसे और अपने गुरु और शायद अपने माता-पिता के भी दर्शन करने बिहार गया हुआ है । बहाँसे वह आश्रम जाकर अपना वह साहित्यिक कार्य पूरा करेगा, जिसकी उसे बड़ी चिन्ता लगी हुई है ।
तुमने पूछा है कि यदि रोगोंका कारण हमारे अनुचित आचरण हैं तो फिर उस शिशुके सम्बन्धमें इस नियमको कैसे लागू किया जाये जो जन्मसे ही अन्धा है ? " मैं समझता था कि तुम बौद्ध होने के नाते आत्माके देहान्तरण और पूर्व जन्म में उतना ही विश्वास रखती होगी जितना कि वर्तमानके अस्तित्वमें । मेरा तो पक्का विश्वास है कि हमारा वर्तमान अस्तित्व हमारे पिछले कर्मोंका ही प्रतिफल है । मैं यह नहीं मानता कि हर जन्म एक नई आत्माका जन्म है । इसलिए मेरे तई जन्म और मृत्यु दोनों ही समानार्थी शब्द हैं, वे एक ही अवस्थाको व्यक्त करनेवाले दो शब्द हैं। तुम यदि आत्माके देहान्तरणके सिद्धान्तका गहराईसे विश्लेषण करो तो तुम स्वयं इसका उत्तर दे सकोगी, और इस प्रश्नका भी कि " वायुमण्डलमें इतने जीवाणु क्यों मौजूद रहते हैं ?"
'पर्ल'[१] और 'लाल'[२] तथा ऐसे कई अन्य लोग भी जिनसे तुम्हारी सिर्फ दुआ सलाम है लेकिन जिनके नामतक तुमको ठीकसे याद नहीं आयेंगे, उच्चारण करना तो दूरकी बात है, इन दिनों मेरे साथ हैं तथा अभी कुछ दिन और रहेंगे । मेरा सदर मुकाम अभी बंगलोर में है और लगभग अगस्त के अन्ततक यहीं रहेगा ।
मैं तुम्हारा पत्र कृष्णदासको भेज रहा हूँ । साथमें उस मित्रके नाम लिखा पत्र भी भेज रहा हूँ ।
तुम्हारा,
मो० क० गांधी
अग्रेजी (एस० एन० १२५२६) की फोटो - नकलसे ।