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१७६. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

स्थायी पताः कुमार पार्क, बंगलोर

२० जुलाई, १९२७


पिछली दो डाकोंसे मैंने आपको कोई पत्र नहीं भेजा। इस समय भी लिखनेके लिए कोई खास बात नहीं है। पर आपको यह जानकर खुशी होगी कि दक्षिण आफ्रिकासे लौटनेके बाद भारत में अपने निवासके इन बारह वर्षोंमें पहली बार मुझे सही माने में पण्डित मालवीयजीके सम्पर्क में काफी दिनोंतक रहनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वे उटकमण्ड जानेके बजाय यहीं बंगलोर में टिक गये थे और तबतक टिके रहे जबतक कलकत्तामें रिजर्व बैंक कमेटीकी बैठक में शामिल होनेके लिए उन्हें यहाँसे प्रस्थान नहीं कर देना पड़ा। हम लोग एक ही घरमें रहे और हमने कई विषयोंपर वार्ता की। हम लोग एक मामलेमें एक निश्चित निष्कर्षपर पहुँचे । वह यह कि दलित वर्गोंके उत्थान के लिए अखिल भारतीय चरखा संघ और अखिल भारतीय गो-रक्षा संघ-जैसा एक अखिल भारतीय अस्पृश्यता संघ बनाया जाये, जिसका अपना एक निश्चित रचनात्मक कार्यक्रम हो । अभी मेरे पास इस योजनाकी रूपरेखापर चर्चा करनेका समय नहीं है पर मैं एक ऐसे दक्ष मन्त्रीकी तलाशमें हूँ जो सचमुच इस काम में विश्वास रखता हो और जो अन्य सभी काम छोड़कर पूरे दिलसे इसीमें अपना पूरा समय लगा सके। ऐसा मन्त्री मिलते ही हम इस सम्बन्ध में आगे कार्रवाई करेंगे।

जमनालालजीने मुझे वह परिपत्र दिखाया था, जो आपने मित्रोंके पास भेजा है । देख रहा हूँ कि आपका दिमाग उस वातावरणमें किस तरह काम कर रहा है। मैं आपको आगाह करना चाहता हूँ कि दो भिन्न पदार्थोंके लिए एक ही तरह की माप और तोलका उपयोग मत कीजिए। हमारी आँखें सज्जित बैठकोंके फर्नीचर देखने- समझने की काफी अभ्यस्त हैं । पर क्या वे ऊपरके नीलाकाशकी शोभा निरखने में उतनी सहायक सिद्ध हो सकती हैं ?

मैंने हलके-फुलके दौरे फिरसे शुरू कर दिये हैं। पता नहीं, इतनी जल्दी दौरे शुरू करके मैंने ठीक किया है या नहीं। लेकिन मैं रोज अपनी शक्तिको तोल रहा हूँ ।

यदि लालाजी[१] आपके साथ हों तो मेरा उनसे स्नेह-वन्दन कहिए, और बता दीजिए कि यदि वे पूरे तौरपर आराम करके फिरसे अपने कामके लायक शक्तिसे भरपूर होकर नहीं लौटेंगे तो उनके साथ मेरा कसकर झगड़ा होगा ।

आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १४१९२) की फोटो - नकलसे ।

  1. लाला लाजपतराय ।