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१७७. भाषण : मैसूरके हिन्दी भाषा सेवा-समाजमें[१]

२० जुलाई, १९२७

महात्माजीने उत्तीर्ण हुए विद्यार्थियोंको प्रमाणपत्र वितरित करने के बाद . . . हिन्दी में अपना भाषण दिया। देशभक्त गंगाधररावने भाषणका वाक्यशः अनुवाद कन्नड़ भाषामें प्रस्तुत किया ।

महात्माजीने कहा कि आपके अध्यक्ष श्री एम. वेंकटकृष्णैया हैं । आप सब लोग उन्हें मैसूरके वयोवृद्ध पथ-प्रदर्शक कहते हैं । वयोवृद्ध पथ-प्रदर्शक " शब्द भी मुझे बड़ा प्रिय लगता है, लेकिन मैं चाहूँगा कि आप श्री वेंकटकृष्णैयाको मैसूरके 'वृद्ध पितामह" कहें, जैसा कि श्री गंगाधररावने कहा है । या आप चाहें तो इनके लिए हिन्दी, संस्कृत या कन्नड़से कोई दूसरा बेहतर नाम चुन लें । आप लोगोंने मुझे जो मानपत्र दिया है उसके पीछे एक सन्देश है । वह सन्देश यह है कि हिन्दी भारतकी सर्वसामान्य भाषा बननी चाहिए, और भारतमें रहनेवाले सभी लोगोंको, वे किसी भी सम्प्रदाय के क्यों न हों, एक राष्ट्रके रूपमें एकताबद्ध होना चाहिए। आज हमारे पास कोई ऐसी भाषा नहीं है, जो सभी देशवासियोंकी भाषा हो । हमारे दिल भी एक नहीं हैं। ब्राह्मणों और अब्राह्मणों, हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच फूट है, और खुद हिन्दू समाजके अन्दर भी अछूत लोग हैं, जिनको इस तरह बिलकुल अलग रखा गया है, जैसे वे हिन्दू समाजका हिस्सा ही न हों। हमारे दिल एक-दूसरेके करीब आनेके बजाय एक-दूसरेसे अलग, दूर जा पड़े हैं। देश-भरके लिए एक सर्वसामान्य भाषा बनाने का उद्देश्य सभी देशवासियोंको एक करना है । और जब सब लोग सर्व- सामान्य भाषाके एक ही सूत्रमें बँध जायेंगे, तब सभी लोग “ वयोवृद्ध पथ-प्रदर्शक " का अर्थ समझने लगेंगे। थोड़ी देरके लिए मान लीजिए कि आप पाण्डवोंके कालमें रह रहे हैं और वृद्ध भीष्म आपके पास आये हैं । अब अगर आप कहें कि "वयोवृद्ध पथ-प्रदर्शक " आये हैं, तो वह कितना हास्यास्पद लगेगा। भीष्म और उनकी प्रतिज्ञाएँ आपको हमेशा याद रखनी चाहिए। आप जब भी भीष्मका ध्यान करेंगे, हर दिल हिम्मत और बहादुरीसे भर जायेगा, और हरएकको भीष्मकी प्रतिज्ञाएँ जरूर याद आ जायेंगी और मनमें एक जागृति पैदा होगी। आप यदि हर रोज सुबह भीष्मका ध्यान करें, अपने-आपको उनके जैसा सोचने लगें, तो मैं कहता हूँ कि आपके अन्दर हिम्मत और बहादुरी पैदा हो जायेगी और राष्ट्रके कायाकल्पके लिए ये चीजें बहुत ही जरूरी हैं।

  1. द्वितीय हिन्दी दीक्षान्त समारोहके अवसरपर ।