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१७८. भाषण : मैसूरमें भेंट किये गये मानपत्रोंके उत्तर में[१]

२० जुलाई, १९२७


महात्माजीने कई मानपत्रोंका सम्मिलित रूपसे उत्तर देते हुए कहा कि मुझपर आपका प्रेम इतना है कि आपने मेरे वक्तकी बचत करने और मुझे सुविधा देनेके लिए अपने सभी मानपत्र मुझे एक साथ भेंट करनेका इन्तजाम किया। मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ । मुझे यह जानकर खुशी हुई कि महाराजाकी सरकारने खादी आन्दोलनके प्रति सहानुभूति दिखाई है और नगरमें बाहर से आनेवाली खादीसे चुंगी हटा लेनेकी बात मान ली है। मुझे भेंट किये गये सभी मानपत्रोंमें खादी और चरखा आन्दोलनोंका उल्लेख किया गया है। मुझे यह देखकर बड़ी खुशी हुई है कि मैसूरके लोग खादी और चरखेको पसन्द करते हैं; लेकिन मेरे अनुभवने मुझे सिखाया है कि मानपत्रों में बाँधे गये तारीफों के पुल देखकर धोखा नहीं खाना चाहिए, क्योंकि लोग प्रशंसा करने तक ही रहे हैं, इससे आगे बढ़कर अमलमें उन्होंने कुछ भी नहीं किया है।

मैसूरका सुन्दर नगर, इसके महलों और शानदार इमारतों, इसकी चौड़ी और अच्छी सड़कों, बड़े-बड़े सुव्यवस्थित उद्यानों और उपवनोंको देखकर मेरा मन बड़ा प्रसन्न हुआ। लेकिन यह चित्रका एक ही पहलू है । और जब में दूसरे पहलूके बारेमें, नगरों और देहातोंमें बसनेवाले दुःख-दर्द में डूबे हुए गरीब लोगोंके बारेमें सोचता हूँ तो मेरा दिल भर आता है। मैं भारतमें वह दिन देखना चाहता हूँ जब यहाँके महाराजा और उनके मन्त्री लोग गरीबी और मुसीबतोंमें गर्क गरीबोंके प्रति प्रेम और दया दिखलायेंगे जिससे कि गरीबों और अमीरोंके बीच की खाई पाटी जा सके। मैं महलों और शानदार इमारतों, या उद्यानों और उपवनोंसे नफरत नहीं करता। पर मैं चाहता हूँ कि भारतमें अमीरों और गरीबोंमें दिली एकता रहे। मैंने पिछले सात वर्षो में जितना कुछ किया है, उसका एक यही मकसद रहा है कि गरीबों और अमीरोंके बीचकी खाई पाटी जाये, दोनोंमें अधिक नजदीकी सम्पर्क स्थापित हो। दोनोंके बीचको यह खाई भद्रावतीके कारखाने और कोलारकी सोनेकी खानोंके कामसे नहीं पाटी जा सकती । भद्रावतीका कारखाना और सोनेकी खानोंका काम भी बेशक बहुत जरूरी है । परन्तु अमीरों और गरीबोंके बीच सम्पर्कका क्षेत्र केवल हाथ-कते सूतके जरिये ही बनाया जा सकता है । आप शायद जानते होंगे कि ऋषिकेश और गंगोत्रीके बीच लक्षमणझूला पुल हाथ-कते सूतकी रस्सियोंसे ही बनाया गया है। तो इसपर

३४-१५

  1. मानपत्र मैसूर नगरपालिका परिषद्, मैसूर जिला मण्डल, मैसूर कांग्रेस कमेटी, दत्तात्रेय गो-रक्षण मण्डली और कनियार जाति तथा अन्य नागरिकोंकी ओरसे भेंट किये गये थे। गांधीजीने इनका उत्तर हिन्दीमें दिया था, जिसका कन्नड़ अनुवाद गंगाधरराव देशपाण्डेने प्रस्तुत किया था ।