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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसीको नाक-भौंह सिकोड़ने की जरूरत नहीं। आप जब एक बार चरखा चलाना शुरू कर देंगे तो आपकी समझ में आ जायेगा कि मैंने चरखके बारेमें जो भी कहा वह सब बिलकुल ठीक है । मुझे यह जानकर बेहद खुशी हुई है कि मैसूरके महाराजा साहब भी चरखा चलाते हैं और इस प्रकार उन्होंने अपनी प्रजाके सामने एक मिसाल पेश की है।

कनियार लोगों से मुझे यही कहना है कि मैं उनके दुःखोंसे दुःखी हूँ । हिन्दू समाज जबतक एक भी हिन्दूको समाजसे बहिष्कृत रखेगा तबतक मैं भी अपने-आपको पंचम ही मानता रहूँगा। अस्पृश्यता के कलंकको मिटाये बिना में स्वराज्यको कल्पना ही नहीं कर सकता ।

परन्तु मैं कनियार लोगों से पूछना चाहता हूँ कि वे अपने-आपको पंचमोंसे ऊँचा क्यों मानते हैं और वे अपने-आपको चार वर्णोंमें सम्मिलित क्यों कराना चाहते हैं ? शास्त्रोंको में जहाँतक समझ पाया हूँ उससे तो यही समझमें आता है कि कोई भी वर्ण किसी दूसरेसे ऊँचा नहीं है । मैंने तो यही समझा है कि ब्राह्मण अपने धर्म, अर्थात् सेवा-धर्मके पालनकी हदतक दूसरे वर्णोंके लोगोंसे श्रेष्ठ है। इसी तरह अपने धर्मका पालन करनेमें, अर्थात् शक्तिशाली लोगोंसे शक्ति होनोंकी रक्षा करनेमें क्षत्रिय अन्य वर्णोंके लोगोंसे श्रेष्ठ हैं । एक वर्ण दूसरे वर्णका शोषण करे, इसमें कोई बड़ाई नहीं है। कनियारोंको युधिष्ठिर के उदाहरणपर चलना चाहिए। युधिष्ठिरने तबतक स्वर्ग में प्रवेश करनेसे इनकार कर दिया था जबतक कि उनके कुत्तेको भी प्रवेशकी अनुमति नहीं दी गई । कनियारों को भी तबतक अपने अधिकारोंके लिए आतुर नहीं होना चाहिए जबतक कि आदि कर्नाटकों को भी हिन्दू समाजमें समुचित स्थान नहीं मिल जाता। मुझे इस बातकी बड़ी खुशी है कि कनियार लोग गोमांस और दारूका सेवन नहीं करते ।

मन्दिरों में प्रवेश के बारेमें महात्माजीने कहा कि आप लोगोंको मन्दिरों में जानेका उतना ही अधिकार है जितना कि मुझे या अन्य किसी हिन्दूको है । मुझे यह सुनकर बड़ी पीड़ा हुई कि कनियारोंको मन्दिरमें प्रवेश नहीं करने दिया जाता। लेकिन आपको अपने सारे कष्ट धैर्यपूर्वक झेलने चाहिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि महाराजा साहब और उनकी सरकार कनियारोंकी दशा सुधारनेके लिए भरसक प्रयत्नशील रही है । एक चीज है जो आपको तथा अन्य हिन्दुओं को भी करनी चाहिए, वह यह कि आप तपश्चर्या द्वारा अपनी आत्मशुद्धि कीजिए । हिन्दू शास्त्रोंमें लिखा है कि ब्रह्मा भी सृष्टिको रचनाका काम तभी कर पाये थे जब उन्होंने तपश्चर्याका सहारा लिया । पार्वतीने तपश्चर्याके बलपर ही परमेश्वरको पति रूपमें प्राप्त किया था। इसी प्रकार कनियार भी तपश्चर्याके बलपर अपने सभी अधिकार प्राप्त कर सकते हैं।

गो-रक्षण मण्डलीके मानपत्रके उत्तर में महात्माजीने कहा कि मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि मैसूरमें हिन्दू और मुसलमान बड़े मेल-मिलापसे रहते हैं। यह