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टिप्पणियाँ

जानकर भी बड़ी खुशी हुई कि अधिकांश मुसलमान गोवध-बन्दीके सवालपर हिन्दुओं- का समर्थन करते हैं। दोनों ही जातियाँ इसके लिए बधाईको पात्र हैं। मैं चाहता हूँ कि भारतकी सभी जातियाँ मैसूरके उदाहरणपर चलें और आपसमें मैत्रीभाव बनाये रखें । गो-रक्षाके लिए कानून बनानेके बारेमें में अपने विचार बता ही चुका हूँ। जिन राज्यों में मुसलमानोंका बहुमत हिन्दुओंका समर्थन करता है, उन राज्यों में गो-वध रोकनेके लिए कानून बना देना राज्यके लिए सर्वथा उचित होगा। परन्तु गो-रक्षाका आन्दोलन करनेवाले जबतक गो-वध रोकने के लिए रचनात्मक कार्य नहीं करते तबतक ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने इस दिशा में कोई उपयोगी काम किया है, उनको में अर्सेसे यही समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि इस दिशा में रचनात्मक कार्य क्यों करना चाहिए। जिस प्रकार ज्ञानके बिना मुक्ति सम्भव नहीं, उसी प्रकार गो-रक्षाके मामले में भी मात्र अंधभक्तिसे काम नहीं चलेगा। मैंने अपने लेखों और भाषणोंमें इसकी विस्तारसे चर्चा की है। आपको उनका अध्ययन करना चाहिए ।

अन्तमें महात्माजीने उन तमाम संस्थाओंको धन्यवाद दिया जिनकी ओरसे उस दिन मानपत्र भेंट किये गये थे। उन्होंने महिलाओंसे अनुरोध किया कि वे खद्दर खरीदें और हाथ - कताई में दिलचस्पी लें। राष्ट्र-गानके साथ आरम्भ हुई यह सभा राष्ट्रगानके साथ ही विसर्जित हो गई।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, २५-७-१९२७


१७९. टिप्पणियाँ

स्वर्गीय सर गंगाराम

सर गंगाराम के निधन से हमारे बीचसे एक सुयोग्य और व्यावहारिक कृषिविद्, एक महान् परोपकारी पुरुष और विधवाओंका बन्धु उठ गया । सर गंगाराम यों तो वयोवृद्ध थे, किन्तु उनमें युवकोंका-सा उत्साह था । उनकी आशावादिता भी उतनी ही प्रबल थी, जितना कि उनका अपने विचारोंका आग्रह । इधर मुझे काफी हदतक उनके सम्पर्क में भी आनेका सुअवसर मिला था। और यद्यपि हम अनेक बातोंमें एक- दूसरेसे भिन्न मत ही रखते थे, तथापि मैंने देखा कि वे एक सच्चे सुधारक और महान् कार्यकर्त्ता थे। उनकी वय और अनुभवके प्रति पूरा आदर रखते हुए मैंने बड़ी दृढ़ता और आग्रह के साथ उनके अनेक विचारोंसे असहमति प्रकट की । भारतकी गरीबी के सम्बन्धमें उनकी कतिपय मान्यताएँ सर्वथा विलक्षण ढंगकी थीं, किन्तु जैसे-जैसे उनकी इन मान्यताओंके प्रति मेरा विरोध बढ़ता गया वैसे ही वैसे मेरे प्रति, जिसे वे अपनी तुलना में कलका नौजवान मानते थे, उनका स्नेह भी बढ़ता गया । वे मेरे