पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१८०. अभावग्रस्त नगरपालिकाएँ

जिन लोगोंको इस बात की चिन्ता रहती है कि नगरपालिकाओं, स्थानिक निकायों (लोकल बोर्ड्स) और जिला निकायका काम-काज सुचारु रूपसे चले, उन्हें श्रीयुत वल्लभभाई पटेलका वह छोटा-सा भाषण जरूर पढ़ना चाहिए, जो उन्होंने गुजरातकी नगरपालिकाओं और स्थानिक निकायोंके प्रथम सम्मेलन में दिया था । वह ऐसे तथ्योंसे भरा पड़ा है, जिन्हें जानकर मन जितना हैरान हो जाता है उतना ही अशान्त भी । वे कहते हैं कि एक ओर जहाँ अधिक अधिकार देकर इन संस्थाओंकी जिम्मेदारियोंको बढ़ा दिया गया है, वहाँ दूसरी ओर इन जिम्मेदारियोंको निभानेके साधनोंको किसी- न-किसी प्रकार कम कर दिया गया है । वे स्वयं ही एक ऐसी नगरपालिकाके अध्यक्ष हैं जो भारतकी पहले दर्जेकी नगरपालिकाओंमें से एक है, अतः इस क्षेत्रमें सेवाका भी उन्हें दीर्घं अनुभव है। स्वयं सरकारको अहमदाबाद नगरपालिकाकी सुन्दर व्यवस्थाके लिए उनकी मुक्त कण्ठसे, साफ-साफ शब्दोंमें प्रशंसा करनी पड़ी है। उन्होंने जिस लगनसे अपनी नगरपालिकाके लिए काम किया है, वैसी लगनसे शायद ही किसीने किया हो । एक बार अध्यक्षका स्थान मंजूर कर लेने पर उन्होंने फीरोजशाह मेहताके समान अपने इस पदसे सम्बन्धित कार्यको अन्य किसी भी राष्ट्रीय कार्यकी अपेक्षा, फिर चाहे वह कितना ही बड़ा और जरूरी क्यों न हो, अधिक महत्त्व दिया है । एक बार अपने धर्मका निर्णय कर लेनेपर उन्होंने बराबर उसीको प्राथमिकता दी है, यद्यपि अक्सर किसी उच्चतर धर्मको उनकी असाधारण योग्यता तथा लगनके साथ काम करनेकी शक्तिकी आवश्यकता रही है। इसलिए इस विषयसे सम्बन्ध रखने- वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए उनके भाषणका ध्यानपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है । उन्होंने अपनी मान्यताओंकी पुष्टि ठोस तथ्योंके बलपर की है और उन तथ्योंकी जाँच- पड़ताल जो चाहे, कर सकता है। उनका खयाल है कि बम्बई प्रान्तकी १५७ नगर- पालिकाएँ बहुत ही कठिन परिस्थितियोंमें काम कर रही हैं। कहीं-कहीं नगरपालिका- की पाठशालाओंमें काम करनेवाले शिक्षकोंकी तनख्वाहें बहुत दिनोंसे बकाया पड़ी हुई हैं । कामको देखते हुए उनकी आमदनी सचमुच बहुत कम है । धनाभाव के कारण उन्हें नगरकी स्वच्छता-सम्बन्धी योजनाओंको खटाईमें डाले रखना पड़ता है। ऐसे ही कारणोंसे अनिवार्य शिक्षा-सम्बन्धी योजनाओंको अलग रख दिया गया है। अपनी बहुत-सी बातोंकी सचाई सिद्ध करते हुए उन्होंने अपने ही दुःखद अनुभवोंको प्रमाण- रूपमें पेश किया है, नगरपालिकाओंमें सरकारकी कंजूसी-भरी नीति की उन्होंने कड़ी आलोचना की है ।

अध्यक्षने यदि सरकारकी आलोचना की है तो नागरिकोंको भी नहीं बख्शा है । उनकी भी वे उतने ही कड़े शब्दों में टीका करते हैं। वे कहते हैं :

हमारे शहरोंके निवासियोंके रहन-सहनका ढंग ऐसा है, मानो वे शहरोंमें नहीं, बल्कि गाँवों में रह रहे हों। इसलिए अनेक घरोंमें स्वच्छता-सफाईके