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१८३. पत्र : एस० वी० कोजलगीको

स्थायी पताः कुमार पार्क,बंगलोर

२१ जुलाई,१९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला । दौरेपर रहने के कारण मैं उसका उत्तर समयपर नहीं दे पाया। उक्त पत्र मैंने गंगाधररावको दिखा दिया है। मैं देखता हूँ कि आप दोनों ही देश-सेवक होते हुए भी स्वभावमें एक-दूसरेसे बिलकुल भिन्न हैं, या कहिए कि मुझे ऐसा लगता है।

मैं दौरा पूरे आत्म-विश्वासके साथ आरम्भ नहीं कर पाया हूँ । मुझे बस यही लगा कि मेरे शरीरमें जो थोड़ी-बहुत शक्ति आ गई है, उसका उपयोग सँभल-सँभल- कर करते हुए मैं अपने दौरेके पूर्व-निर्धारित कार्यक्रमको कुछ सुगम रूप देकर उसे पूरा करने और खादी कार्य के लिए चन्दा उगाहनेकी कोशिश कर सकता हूँ । सच तो यह है कि दौरा केवल खादीके कामको ही आगे बढ़ाने के उद्देश्यसे आरम्भ किया गया था । देशकी वर्तमान स्थिति में आम किस्मका प्रचार कार्य करनेकी न तो मेरी कोई इच्छा थी और न मेरे अन्दर उतनी क्षमता ही थी । मेरे लिए तो खादी ही मेरा प्रचार कार्य है । वह इसलिए कि यदि केवल इसी कामको पूर्णतया सफल बनाकर दिखा दिया जाये तो अन्य सभी काम अपने-आप सधते जायेंगे। मेरा अपना खयाल यह है कि कमसे कम एक रचनात्मक कार्यको हम बड़े पैमानेपर इतना सफल बनायें जिससे दुनियाकी नजर उसकी ओर खुद-ब-खुद जा सके । आज स्थिति यह है कि जनताको अपनी क्षमतापर विश्वास नहीं रह गया है, और वह मान बैठी है कि उसे किसी भी रचनात्मक काममें कोई सफलता नहीं मिल सकती ।

गंगाधरराव भी मेरी ही तरह जी-जान से खादीके काम में जुटे हुए हैं। इसलिए वे मुझे खादीकी बिक्री या उत्पादन अथवा खादी कार्य के लिए चन्देकी दृष्टिसे लाभप्रद सिद्ध हो सकनेवाले जिस-किसी स्थान में ले जाना चाहेंगे, मैं सहर्ष जाऊँगा । इसीलिए मैं आपसे दौरेमें साथ चलने के लिए नहीं कह रहा हूँ, लेकिन मुझे आशा है कि जहाँ-जहाँ मैं जाऊँगा, उन स्थानोंमें रहनेवाले अपने मित्रोंको पत्र लिखकर आप गंगाधररावकी या खादीकी जितनी भी सहायता कर सकते हैं, अवश्य करेंगे ।

अगस्तके अन्ततक तो मैं मैसूरमें ही व्यस्त रहूँगा । इसके बाद यदि शरीर में शक्ति रही तो तमिलनाडके जिलोंका दौरा करूँगा । इसलिए कर्नाटकके दौरेके लिए यदि इस वर्ष समय दे भी पाऊँगा तो अक्टूबर के मध्यसे पहले तो उसकी सम्भावना नहीं ही है। लेकिन मैसूरका दौरा पूरा कर चुकने के बाद ही मैं निश्चित तौरपर कुछ कह सकूंगा। मैंने हर स्थानके लोगोंको कहलवा दिया है कि कार्यक्रममें जितनी