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पत्र : कुसुमवहन देसाईको

का कर्त्तव्य है, तब आप हिन्दू होते हुए गो-मांस और मृत पशुओंका भक्षण कैसे कर सकते हैं? मुझे बताया गया है कि आप उसे इसलिए खाते हैं कि वह सस्ता पड़ता है। लेकिन ऐसी कोई चीज लाख सस्ती होनेपर भी सस्ती नहीं हो सकती जो धर्म-विरुद्ध हो, और ऐसी कोई चीज लाख मँहगी होनेपर भी मँहगी नहीं पड़ सकती, जो धर्मसम्मत हो । मैं आपसे सच कहता हूँ कि आपके साथ हेल-मेल रखनेके लिए सनातनी हिन्दुओंको राजी करनेमें मुझे बड़ी मुश्किलका सामना करना पड़ता है । वे कहने लगते हैं कि आप लोग गो-मांस, दारू और ऐसी ही अन्य वस्तुओंका सेवन करते हैं । इसीलिए आप यदि अपने-आपको शुद्ध बनायेंगे तो मेरे लिए यह काम आसान हो जायेगा । इसपर आप व्यंग्यपूर्वक यह मत कहिए कि 'सवर्ण' हिन्दू भी तो हमसे कोई अच्छे नहीं हैं। मैं जानता हूँ कि वे अच्छे नहीं है, परन्तु वे अपने अहं- कारके कारण मेरी बात नहीं सुनेंगे । आपको उनकी नकल नहीं करनी चाहिए । आपको तो अपने-आपको ऊँचा उठाना है। इसलिए आपको आत्म-शुद्धि करनी है। और यदि आप आत्म-शुद्धि कर लें तो फिर संसारकी कोई भी ताकत आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकेगी।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ४-८-१९२७

१८७. पत्र : कुसुमबहन देसाईको

बंगलोर

आषाढ़ बदी ८, सं० १९८३

२२ जुलाई,१९२७

चि० कुसुम,

हरिभाईके बारेमें तुम्हें क्या लिखूं ? सिर्फ तुम्हींको उनका वियोग खटकेगा सो बात नहीं। बहुतोंको दुःख हुआ है । परन्तु वह सहन करने योग्य है । सब अपने-अपने समयपर जुदा होते हैं। हमें भी यही करना है। इतनी बात भी तुम्हें लिखने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि भाई नाजुकलाल लिखते हैं कि तुमने बहुत हिम्मत दिखाई है और हरिभाईसे शिक्षा पानेवालीको यही शोभा देता है, क्योंकि तुम उनकी पत्नी की अपेक्षा शिष्या अधिक थीं ।

अब तुम्हारा क्या करनेका विचार है ? मुझे ध्यान नहीं है कि तुम्हारे माता- पिता आदि हैं या नहीं। जो भी स्थिति हो बताना । यदि आश्रममें रहना चाहो तो वह भी बताना । मुझे निःसंकोच लिखना ।[१]

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]

बापुना पत्रो - ३ : कुसुमबहेन देसाईने

  1. देखिए " एक सत्याग्रहीका देहान्त”, ७-८ - १९२८ ।