पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

केवल यही 'शुद्ध कौड़ी' प्राप्त नहीं हुई है; इसी तरहके और भी दान मिलते रहते हैं। इसलिए ईश्वरसे यही प्रार्थना करता रहता हूँ कि एक पाई भी कहीं गलत ढंगसे खर्च न हो पाये; पाई-पाई उसी कामपर खर्च की जाये जिसके लिए वह इकट्ठी की गई है। दान देनेवालोंको ही नहीं आम लोगोंको भी सारा हिसाब-किताब देखना चाहिए और गलतियाँ या गड़बड़ियाँ हों तो बतानी चाहिए। यदि वे इस ओर ध्यान नहीं देते और जो लोग आज कोषके कर्ता-धर्ता हैं, वे कलको गुजर जाते हैं तो फिर इसका इन्तजाम करनेवाला या कामको आगे चलानेवाला कोई नहीं रह जायेगा ।

भारतमें अनेक संस्थाएँ, अनेक धर्मार्थ संस्थाएँ हैं, उनमें से अनेकोंकी निधियाँ व्यक्तिगत कामोंके लिए इस्तेमाल होती हैं। यदि जनता अपनी जिम्मेदारी समझे तो यह सब असम्भव हो जाये। मैं सबसे अनुरोध करता हूँ कि आप इसका ध्यान रखें कि चरखा-कार्यके लिए इकट्ठा किये गये चन्देकी राशि ठीक ढंगसे खर्च की जाये। लेकिन इस दायित्वके सफल निर्वाहके लिए हमें कर्त्तव्य और दायित्वको भावनासे अनुप्राणित व्यक्तियोंकी आवश्यकता है।[१]

कर्नाटकके लोगोंमें कार्य कुशलताकी कोई कमी नहीं । आपके बीच एक जाने-माने इंजीनियर[२] हैं, संगीतज्ञ हैं और एक प्रसिद्ध कलाकार[३] हैं, और भी अनेक लोग हैं, जिनके नाम अन्य क्षेत्रोंमें विख्यात हैं । अब मैं चाहता हूँ कि आपके बीचसे एक अत्यन्त ही सिद्धहस्त कताई - विशेषज्ञ और निकल आये । यहाँ खादीकी तीन दुकानें हैं । मेरी तो कामना थी कि इनसे आपका काम न चलता, आपके लिए और ज्यादा दुकानें खोलनी पड़तीं; परन्तु मैं जानता हूँ और इस सभासे स्पष्ट दिख रहा है कि ये तीन दुकानें भी आपकी जरूरत से ज्यादा हैं। खादीसे हमदर्दी रखनेवाले अनेक लोग आज भी खादी नहीं पहन रहे हैं। इसलिए तीनके बजाय एक ही दुकान रखें, लेकिन उसे अच्छी तरह चलायें। कई संस्थाओंने चरखा अपना लिया है। मुझे बतलाया गया था कि महाराजा साहबके अंग-रक्षकोंने भी कातना शुरू कर दिया है। पर मैं यह भी जानता हूँ कि यह काम कितने अधकचरे ढंगसे किया जा रहा है। इन सभी संस्थाओं और कातनेवाले अंग-रक्षकोंके लिए भी कताईका एक विशेषज्ञ रखना जरूरी है। बेसुरे संगीतकी तरह, बेढंगा सूत भी किसी कामका नहीं होता । दरिद्रनारायणकी सेवा करनेके इच्छुक सभी लोगोंको में विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि चरखेका एक अपना संगीत, इसकी एक अपनी कला, अपना आर्थिक पहलू और एक अपना ही आनन्द होता है । मैंने मैसूरकी अनेक संस्थाएँ देखी हैं। मैंने प्रिन्सेस कृष्णराजमन्नी आरोग्याश्रम देखा, जहाँसे मुझे कोई आशा नहीं थी, पर जहाँके मरीजोंने करोड़ों गरीब भाइयोंके लिए अपने प्रेमके सच्चे प्रतीक के रूपमें आग्रहपूर्वक अपनी भेंट दी। मैंने अंधे-गूंगोंका आश्रम देखा, जहाँके नेत्रहीन युवकोंने

  1. यहाँ तकका अंश २५-७-१९२७ के हिन्दूमें प्रकाशित विवरण लिया गया है।
  2. डॉ० एम० विश्वेश्वरैया ।
  3. वेंकटप्पा ।