पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४१
पत्र : एन० आर० मलकानीको

दो दिन तक संगीतसे मेरी आत्माको तृप्त किया। मैंने अनाथ और अशक्त बालकोंका आश्रम और आदि-कर्नाटक बालकोंकी पाठशाला भी देखी है। इनसे महाराजाकी मानवीयताका परिचय मिलता है । पर मेरा कहना है कि आपको इस मानवीयताकी परिधिको अभी और आगे बढ़ाना है। यह हमारी उदारताकी प्रवृत्तिका ही प्रताप है कि समाजमें अन्धे और अशक्तोंको भी भूखों नहीं मरना पड़ता । परन्तु हमारे देशके करोड़ों ग्रामवासी ऐसे हैं जो भीख माँगनेके लिए हाथ नहीं पसार सकते और जो बहुत ही छोटी-छोटी जोतोंपर जीविकाके लिए निर्भर रहते हैं और इसलिए जिन्हें अक्सर भूखे रहना पड़ता है। उनकी भुखमरी और गरीबीके लिए हम लोग ही जिम्मे- दार हैं। मैसूर तो मानवीयतापूर्ण और समाज-सेवी संस्थाओंका घर है । इसीलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि आप लोग भूखों मरते करोड़ों मेहनतकशोंके लिए भी कोई व्यवस्था अवश्य करें ।

आप दो तरह से भाग्यशाली हैं। आपके प्रदेशकी जलवायु अत्युत्तम है, प्राकृतिक छटा मनोरम है, और साथ ही आपके महाराजा भले और उदार प्रवृत्तिके हैं, वे सदा अपनी प्रजाके कल्याणकी बात सोचते रहते हैं । ऐसे राज्य में तो एक भी भिखारी नहीं रहना चाहिए और न किसीको भूख और गरीबीसे कष्ट पाना चाहिए। मैंने आज कृष्णराज सागर बाँध देखा । सर एम० विश्वेश्वरैयाकी इंजीनियरीका वह चमत्कार देखकर मेरा मन विभोर हो उठा। मैंने सुना है कि विश्व भर में उस तरहका बस एक ही बाँध और है । ऐसी उद्यमशीलताके प्रदेशमें दरिद्रनारायणके लिए भी कुछ व्यवस्था कीजिए, बस यही मेरा अनुरोध है । आपने मुझे अपने प्रेमसे सराबोर कर दिया है, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ और ईश्वरसे यही माँगता हूँ कि मैं अपने-आपको इस प्रेमके योग्य सिद्ध कर सकूं ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ११-८-१९२७

१९१. पत्र : एन० आर० मलकानीको

कुमार पार्क,बंगलोर

२४ जुलाई, १९२७

प्रिय मलकानी,

तुम्हारा सुन्दर पत्र मिला। जल्दबाजी में कुछ भी मत होने दो। मैंने चार दिन पहले थडानीको विस्तारपूर्वक एक पत्र[१] लिखा था और वह तुम्हें पढ़वा देनेके लिए भी कहा था ।

गुजरात विद्यालयका तो इस समय प्रश्न ही नहीं उठता । पर अगर तुम अपन- आपको बिलकुल मेरे हवाले कर दो और सब कुछ मेरी मर्जीपर छोड़ दो, तो मैं कई तरहसे तुम्हारा उपयोग कर सकता हूँ । लेकिन यह महत्त्वकी बात नहीं हैं ।

३४-१६

  1. देखिए " पत्र : एन० वी० थडानीको ", १९-७-१९२७ ।