पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२७८

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तुम जिन-जिन लोगोंकी रायकी जरा भी कद्र करते हो उन सबके साथ बैठकर शान्त मनसे दृढ़ताके साथ चर्चा करो, और फिर देखो कि तुम्हारा अपना विचार क्या बनता है । मेरे साथ स्थायी रूपसे रहनेका अर्थ तो तुम समझते ही हो। वैसा करनेमें हो सकता है, तुम्हें फाँसीके तख्तेपर चढ़ना न पड़े, पर तुम्हें उसपर इस तरह चढ़नेके लिए हमेशा तैयार तो रहना पड़ेगा, मानो तुम किसी सिंहासन या आचार्य के आसन- पर बैठने जा रहे हो।

थडानी मेरे इससे पहलेवाले पत्रको, या तुम्हारे नाम मेरे पत्रोंको बिलकुल भी नहीं समझ सके ।पता नहीं, मेरे पिछले पत्रका वे क्या अर्थ लगायेंगे ।

हृदयसे तुम्हारा,

बापू,

अंग्रेजी (जी० एन० ८७७) की फोटो - नकल तथा एस० एन० १२६१६ से भी ।

१९२. पत्र : एन० आर० मलकानीको

२४ जुलाई, १९२७

प्रिय मलकानी,

इतने दिनोंसे जिसकी मैं आशा लगाये था, तुम्हारा वह पत्र मुझे मिल गया ।

मैं तुम्हारी स्थिति समझता हूँ । तुम निश्चय ही सबसे पहले थडानीके साथ हुआ अपना करार पूरा करो। अब तुमने सिन्धी- साहित्य-सभाका काम अपने ऊपर ले लिया है और जाहिर है कि तुम बाढ़-सहायता सेवाके कामसे तो हाथ खींच नहीं सकते । इन जिम्मेदारियोंसे छुट्टी पानेपर मुझे लिखो। इस बार जल्दबाजी नहीं करनी है । तुम्हें अपनी पत्नी और सासके साथ बैठकर हर चीजपर विस्तारसे बात कर लेनी चाहिए। अभी तुम वहाँके कामोंको आजमाकर देखो और अगर इस आजमाइशके दौरान तुम्हें पूरी तरह मेरे साथ रहनेकी अपेक्षा किसी दूसरे काममें ज्यादा दिलचस्पी महसूस होने लगे, तो तुमको निश्चय ही छुटकारा दे दिया जायेगा। मेरे साथ रहने के लिए तभी आओ जब तुम्हें ऐसा लगे कि इसके बिना तुम्हारा काम चल ही नहीं सकता । यह तो तय ही है कि तुम अपने हाथमें जो भी काम लोगे, उसे पूरी कुशलता के साथ सम्पन्न करोगे । हाँ, यह जरूर है कि मैंने तुम्हें " चन्द चुने हुए लोगों " में से माना था और में उसीके अनुसार तुमसे बड़ी-बड़ी आशाएँ बाँधे बैठा था । मगर किसीको जबरदस्ती तो उस साँचे में ढाला नहीं जा सकता । उसे उस अवस्थामें स्वभावतः आत्मिक तुष्टिका अनुभव होना चाहिए । इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अपने-आपको अच्छी तरह ठोक-बजाकर देख लो और तब अगर मन यहाँ वापस आनेको कहे तो आओ। यहाँ आनेका मतलब फूलोंकी सेजपर सोना नहीं, बल्कि कर्म-संकुल जीवन होगा । वैसे तो मेरे मन में अनेक योजनाएँ हैं, लेकिन में