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पत्र : रेहाना तैयबजीको

नहीं कह सकता कि अगर तुम आज ही यहाँ आ जाओ तो मैं तुम्हें किस काम में लगाऊँगा । बस इतना ही कह सकता हूँ कि तुम्हें वहीं तैनात करूँगा जहाँ सबसे अधिक कठिनाई होगी।

यह पत्र तुम अपने जितने भी मित्रोंको चाहो दिखा दो ।

थडानीकी बातपर अफसोस हुआ । मैं जानता हूँ कि मेरे बारेमें उनकी गलत- फहमी ज्यादा दिन नहीं रहेगी। मैंने गुस्सेके कारण नहीं, अपने स्नेहके कारण ही कड़ी भाषाका प्रयोग किया था ।

जयरामदाससे पूछो कि उनको रुपये-पैसोंकी जरूरत तो नहीं है। बाढ़-सहायता कार्य के लिए तुम्हारे पास काफी कार्यकर्त्ता हैं या नहीं ? मेरा अनुभव है कि यदि सच्चे कार्यकर्त्ता पर्याप्त संख्या में न हों तो रुपये-पैसोंसे कुछ नहीं बनता ।

सस्नेह,

तुम्हारा,

बापू

अंग्रेजी (जी० एन० ८७३) की फोटो - नकलसे ।

१९३. पत्र : रेहाना तैयबजीको

कुमार पार्क,बंगलोर

२४ जुलाई, १९२७

प्रिय रेहाना,

तुम्हारा खत मिला। चूंकि तुम कहती हो कि तुम्हारे और वालिदाके बीच चीजें तय हो चुकी हैं, इसलिए मैं उनको या तुम्हारे वालिदको उसके बारेमें कुछ भी नहीं लिख रहा हूँ । अब तो यही उम्मीद करता हूँ कि तुम अपना रास्ता आप बना लोगी, और अगर तुम्हारे दिमागमें यह बात साफ हो कि तुम क्या चाहती हो और तुम उसपर पूरी नम्रतापूर्वक मजबूतीसे जमी रहोगी तो तुम निश्चय ही अपना रास्ता बना लोगी ।

किसी भी उद्योगको संरक्षण देना हमारा कर्त्तव्य नहीं है । लेकिन अगर अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करनेमें किसी उद्योगको संरक्षण देना हमारा कर्त्तव्य हो भी तो जाहिर है, हम उसीको संरक्षण देंगे जो हमारे पड़ोसियोंको, जिन्हें हमारी सहायताकी सबसे ज्यादा जरूरत है, सहारा देता हो । यही तुम्हारे सवालका जवाब है।

सस्नेह,

हृदयसे तुम्हारा,

बापू

अंग्रेजी (एस० एन० ९६०५ ) की फोटो - नकलसे ।