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१९४. पत्र : के० टी० चक्रवर्तीको

कुमार पार्क,बंगलोर

२४ जुलाई, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका इसी ११ तारीखका पत्र मिला। आपने ईश्वरसे सही मार्ग दिखाने की प्रार्थना की है, आशा है ईश्वर आपकी प्रार्थना सुनेगा ।

'यंग इंडिया' का कौन-सा अनुच्छेद देखकर आपने यह सोचा कि १९०१ में कांग्रेसने मेरे साथ जो व्यवहार किया था, उसे मैं अत्यन्त ही अपमानजनक मानता हूँ ? खैर, मेरे साथ सभीने जो भी व्यवहार किया था उससे ज्यादा अच्छे व्यवहारकी न तो मुझे अपेक्षा थी और न उसका मुझे कोई अधिकार ही था । आपने जिस प्रस्ता- वनाका उल्लेख किया है, वह मुझे याद नहीं पड़ती। हाँ किसी अन्य स्थलपर मैंने सुरेन्द्रनाथ बनर्जीके अपने प्रति पितृवत् व्यवहारका जिक्र जरूर किया है। सर दिनशा वाछाने जिस प्रकार मुझे रोका था, उसका उन्हें पूरा अधिकार था।[१] स्थिति सचमुच असहनीय बन जायेगी, यदि हर नवयुवक थोड़ी-बहुत सेवाके बलपर ही अपने लिए वे सभी सुविधाएँ और विशेषाधिकार माँगने लगे जिनका हक देशके पुराने और मॅजे हुए नेताओंको ही हो सकता है। आप देखेंगे कि [ आत्मकथाके ] इन अध्यायोंमें गोखले का नाम बार-बार आया है। उसका सीधा-सादा कारण बस यही है कि उन्होंने दूसरोंके मुकाबले मुझको अपना विशेष स्नेह दिया और मेरा खास खयाल रखा, लेकिन मैं ऐसा कुछ नहीं समझता कि उन्होंने मेरे साथ विशेष व्यवहार इसलिए किया कि मैं उसका योग्य पात्र था या इसलिए कि मैं जिस सम्मानका पात्र था, उसे देने में जहाँ अन्य लोग चूक गये वहाँ उनको मुझे वह उचित सम्मान देनेका खयाल रहा । क्या आप नहीं देख पाते कि मैंने उन अध्यायोंमें यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है। कि गोखले और मेरे बीच एक स्वतःस्फूर्त सम्बन्ध बन गया था, ठीक वैसे ही जैसे कि पति और पत्नीके बीच होता है । यह कैसी विडम्बना होगी यदि कोई स्त्री, सिर्फ इसलिए कि वह एक पुरुष-विशेषको ही अपनी ओर आकर्षित कर सकी है, यह सोचने लगे कि केवल उस पुरुष विशेषने उसके गुणोंकी कद्र की और अन्य सभीने उसका अपमान किया है। क्या आप नहीं समझते कि ऐसी चीजें प्रकट करती हैं। कि प्रकृतिके अपने कुछ रहस्यपूर्ण तरीके हैं, और इस प्रकारके स्नेह बन्धनोंका मूल

  1. देखिए आत्मकथा, भाग ३, अध्याय १५ ।