पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/२८२

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१९६. पत्र : खुर्शीदको

कुमार पार्क,बंगलोर

२४ जुलाई, १९२७

तुम्हारा खत पहुँचनेकी इत्तिला दे रहा हूँ। मैं सोच ही रहा था कि इतने दिनोंसे तुम लोगों में से किसीका भी खत क्यों नहीं आया । कितना अच्छा रहता कि इस सफर में तुम मेरे साथ होतीं, क्योंकि यह एक बड़ा ही खूबसूरत इलाका है । यहाँ कला काफी दिखाई पड़ती है और संगीत भी बहुत बढ़िया है ।

किसी देशी राज्य में तुम्हें संगीत शिक्षिकाका काम मिलनेके बारेमें आखिरकार क्या होता है, अवश्य लिखना । मेरी सेहत अच्छी है ।

हृदयसे तुम्हारा,

कुमारी खुर्शीद

नेपियन सी रोड

बम्बई

अंग्रेजी (एस० एन० १४१९५ ) की फोटो- नकलसे ।

१९७. पत्र : कुवलयानन्दको

कुमार पार्क,बंगलोर

२४ जुलाई, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। अपने शरीरके बारेमें जितनी भी सावधानी में बरत सकता हूँ, बरत रहा और दौरेमें कमसे कम मेहनत करनेकी कोशिश कर रहा हूँ । मैं आपकी इस बात से बिलकुल सहमत हूँ कि यदि दौरा करना बिलकुल बन्द ही रखता तो शायद ज्यादा अच्छा होता। लेकिन यहाँ जब डाक्टरने मेरी हिम्मत बढ़ाई तो मुझे भी लगा कि अब दौरेको स्थगित रखनेका मुझे कोई अधिकार नहीं । आखिर आदमीको इस जीवन में कुछ जोखिम तो उठानी ही पड़ती है और...[१] शरीर, जिसे एक दिन तो नष्ट होना ही है । यदि कोई दुर्घटना हो गई तो उसके लिए मैं योगासनोंके अभ्यासको किंचित् भी दोषी नहीं मानूंगा; दोषी मैं अपने-आपको ही मानूंगा इसलिए कि मैंने ऐसा प्रयोग क्यों किया, जिसमें कोई खतरा मौजूद था ।

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